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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 3: समस्त अवतारों के स्रोत : कृष्ण  »  श्लोक 17
 
 
श्लोक  1.3.17 
धान्वन्तरं द्वादशमं त्रयोदशममेव च ।
अपाययत्सुरानन्यान्मोहिन्या मोहयन् स्त्रिया ॥ १७ ॥
 
शब्दार्थ
धान्वन्तरम्—धन्वन्तरि नामक भगवान् का अवतार; द्वादशमम्—बारहवाँ; त्रयोदशमम्—तेरहवाँ; एव—निश्चय ही; — तथा; अपाययत्—पीने के लिए दिया; सुरान्—देवताओं को; अन्यान्—अन्यों को; मोहिन्या—सुन्दरी द्वारा; मोहयन्— मोहते हुए; स्त्रिया—स्त्री के रूप में ।.
 
अनुवाद
 
 बारहवें अवतार में भगवान् धन्वन्तरि के रूप में प्रकट हुए और तेरहवें अवतार में उन्होंने स्त्री के मनोहर सौंदर्य द्वारा नास्तिकों को मोहित किया और देवताओं को पीने के लिए अमृत प्रदान किया।
 
 
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