चतुर्दशं नारसिंहं बिभ्रद्दैत्येन्द्रमूर्जितम् ।
ददार करजैरूरावेरकां कटकृद्यथा ॥ १८ ॥
शब्दार्थ
चतुर्दशम्—चौदहवें; नार-सिंहम्—आधा मनुष्य तथा आधा सिंह शरीर वाले भगवान् का अवतार; बिभ्रत्—अवतरित हुए; दैत्य-इन्द्रम्—नास्तिकों का राजा; ऊर्जितम्—अत्यन्त बलिष्ठ; ददार—चीर डाला; करजै:—नाखूनों से; ऊरौ—गोद में; एरकाम्—बेंत को; कट-कृत्—बढ़ई; यथा—जिस तरह ।.
अनुवाद
चौदहवें अवतार में भगवान् नृसिंह के रूप में प्रकट हुए और अपने नाखूनों से नास्तिक हिरण्यकशिपु के बलिष्ठ शरीर को उसी प्रकार चीर डाला, जिस प्रकार बढ़ई लट्ठे को चीर देता है।
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