पञ्चदशम्—पन्द्रहवाँ; वामनकम्—बौना ब्राह्मण; कृत्वा—धारण करके; अगात्—गये; अध्वरम्—यज्ञ स्थल में; बले:—राजा बलि के; पद-त्रयम्—केवल तीन पद; याचमान:—माँगते हुए; प्रत्यादित्सु:—मन में लौटाने की इच्छा करते हुए; त्रि-पिष्टपम्—तीनों लोकों का राज्य ।.
अनुवाद
पन्द्रहवें अवतार में भगवान् ने बौने ब्राह्मण (वामन) का रूप धारण किया और वे महाराज बलि द्वारा आयोजित यज्ञ में पधारे। यद्यपि वे हृदय से तीनों लोकों का राज्य प्राप्त करना चाह रहे थे, किन्तु उन्होंने केवल तीन पग भूमि दान में माँगी।
तात्पर्य
सर्वशक्तिमान भगवान् किसी को भी थोड़ा-थोड़ा देकर पूरे ब्रह्माण्ड विश्व का राज्य प्रदान कर सकते हैं और इसी प्रकार से एक छोटा-सा भूखण्ड माँगने के बहाने ब्रह्माण्ड का राज्य वापस भी ले सकते हैं।
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