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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 3: समस्त अवतारों के स्रोत : कृष्ण  »  श्लोक 20
 
 
श्लोक  1.3.20 
अवतारे षोडशमे पश्यन् ब्रह्मद्रुहो नृपान् ।
त्रि:सप्तकृत्व: कुपितो नि:क्षत्रामकरोन्महीम् ॥ २० ॥
 
शब्दार्थ
अवतारे—भगवान् के अवतार में; षोडशमे—सोलहवें; पश्यन्—देखते हुए; ब्रह्म-द्रुह:—ब्राह्मणों के आदेशों की अवज्ञा करने वाले; नृपान्—राजाओं को; त्रि:-सप्त—सात का तीन गुना, इक्कीस बार; कृत्व:—किया था; कुपित:—क्रुद्ध; नि:—रहित; क्षत्राम्—प्रशासक वर्ग से; अकरोत्—किया; महीम्—पृथ्वी को ।.
 
अनुवाद
 
 सोलहवें अवतार में भगवान् ने (भृगुपति के रूप में) क्षत्रियों का इक्कीस बार संहार किया, क्योंकि वे ब्राह्मणों (बुद्धिमान वर्ग) के विरुद्ध किये गये विद्रोह के कारण उनसे क्रुद्ध थे।
 
तात्पर्य
 यह अपेक्षा की जाती है कि क्षत्रिय या प्रशासक वर्ग उन बुद्धिमान मनुष्यों के निर्देश से इस लोक का शासन चलायेंगे, जो प्रामाणिक शास्त्रों के आधार पर शासकों को निर्देश देते हैं। शासक इसी निर्देश के अनुसार शासन चलाते हैं। जब कभी क्षत्रिय या शासक वर्ग विद्वान तथा बुद्धिमान ब्राह्मणों के आदेशों की अवज्ञा करते हैं, तो वे बलपूर्वक उनके पदों से हटा दिये जाते हैं और बेहतर प्रशासन की व्यवस्था की जाती है।
 
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