श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 3: समस्त अवतारों के स्रोत : कृष्ण  »  श्लोक 23
 
 
श्लोक  1.3.23 
एकोनविंशे विंशतिमे वृष्णिषु प्राप्य जन्मनी ।
रामकृष्णाविति भुवो भगवानहरद्भ‍रम् ॥ २३ ॥
 
शब्दार्थ
एकोनविंशे—उन्नीसवें में; विंशतिमे—बीसवें में भी; वृष्णिषु—वृष्णि वंश में; प्राप्य—पाकर; जन्मनी—जन्म; राम— बलराम; कृष्णौ—तथा श्रीकृष्ण; इति—इस प्रकार; भुव:—जगत का; भगवान्—भगवान् ने; अहरत्—दूर किया; भरम्—बोझ को ।.
 
अनुवाद
 
 उन्नीसवें तथा बीसवें अवतारों में भगवान् वृष्णि वंश में (यदु कुल में) भगवान् बलराम तथा भगवान् कृष्ण के रूप में अवतरित हुए और इस तरह उन्होंने संसार के भार को दूर किया।
 
तात्पर्य
 इस श्लोक में भगवान् शब्द का विशिष्ट उल्लेख यह संकेत है कि बलराम तथा कृष्ण भगवान् के आदि रूप हैं। इसकी अधिक व्याख्या आगे की जायेगी। जैसाकि हम इस अध्याय के प्रारम्भ में देख चुके हैं, भगवान् कृष्ण पुरुष से आये हुए अवतार नहीं हैं। वे साक्षात् परमेश्वर हैं और बलराम भगवान् के प्रथम पूर्णांश हैं। बलदेव से आगे पूर्णांशों की शृंखला का इस प्रकार विस्तार होता है—वासुदेव, संकर्षण, अनिरुद्ध तथा प्रद्युम्न। भगवान् श्रीकृष्ण वासुदेव हैं और बलदेव संकर्षण हैं।
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥