उन्नीसवें तथा बीसवें अवतारों में भगवान् वृष्णि वंश में (यदु कुल में) भगवान् बलराम तथा भगवान् कृष्ण के रूप में अवतरित हुए और इस तरह उन्होंने संसार के भार को दूर किया।
तात्पर्य
इस श्लोक में भगवान् शब्द का विशिष्ट उल्लेख यह संकेत है कि बलराम तथा कृष्ण भगवान् के आदि रूप हैं। इसकी अधिक व्याख्या आगे की जायेगी। जैसाकि हम इस अध्याय के प्रारम्भ में देख चुके हैं, भगवान् कृष्ण पुरुष से आये हुए अवतार नहीं हैं। वे साक्षात् परमेश्वर हैं और बलराम भगवान् के प्रथम पूर्णांश हैं। बलदेव से आगे पूर्णांशों की शृंखला का इस प्रकार विस्तार होता है—वासुदेव, संकर्षण, अनिरुद्ध तथा प्रद्युम्न। भगवान् श्रीकृष्ण वासुदेव हैं और बलदेव संकर्षण हैं।
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