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श्लोक 1.3.27  |
ऋषयो मनवो देवा मनुपुत्रा महौजस: ।
कला: सर्वे हरेरेव सप्रजापतय: स्मृता: ॥ २७ ॥ |
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शब्दार्थ |
ऋषय:—ऋषिगण; मनव:—समस्त मनु; देवा:—सारे देवता; मनु-पुत्रा:—मनु की सारी सन्तानें; महा-ओजस:—अत्यन्त शक्तिमान; कला:—पूर्णांश के अंश; सर्वे—सामूहिक रूप से; हरे:—भगवान् का; एव—निश्चय ही; स-प्रजापतय:— प्रजापतियों सहित; स्मृता:—जाने जाते हैं ।. |
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अनुवाद |
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सारे ऋषि, मनु, देवता तथा विशेष रूप से शक्तिशाली मनु की सन्तानें भगवान् के अंश या उन अंशों की कलाएँ हैं। इसमें प्रजापतिगण भी सम्मिलित हैं। |
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तात्पर्य |
जो अपेक्षतया कम शक्तिशाली होते हैं, वे विभूति कहलाते हैं और जो अधिक शक्तिशाली होते हैं, वे आवेश-अवतार कहलाते हैं। |
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