हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 3: समस्त अवतारों के स्रोत : कृष्ण  »  श्लोक 6
 
 
श्लोक  1.3.6 
स एव प्रथमं देव: कौमारं सर्गमाश्रित: ।
चचार दुश्चरं ब्रह्मा ब्रह्मचर्यमखण्डितम् ॥ ६ ॥
 
शब्दार्थ
स:—उसने; एव—ही; प्रथमम्—पहला; देव:—परमेश्वर; कौमारम्—कुमारगण (अविवाहित); सर्गम्—सृष्टि; आश्रित:—अधीन; चचार—सम्पन्न किया; दुश्चरम्—करना अत्यन्त कठिन, दुष्कर; ब्रह्मा—ब्रह्मा की कोटि में; ब्रह्मचर्यम्—ब्रह्म की अनुभूति प्राप्त करने की तपस्या में; अखण्डितम्—अविच्छिन्न ।.
 
अनुवाद
 
 सृष्टि के प्रारम्भ में सर्वप्रथम ब्रह्मा के चार अविवाहित पुत्र (कुमारगण) थे, जिन्होंने ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते हुए परम सत्य के साक्षात्कार हेतु कठोर तपस्या की।
 
तात्पर्य
 इस भौतिक जगत की पहले उत्पत्ति, फिर पालन और तब एक निश्चित कालावधि के बाद संहार होता रहता है। अतएव जीवों के पिता ब्रह्मा की विशिष्ट कोटियों के अनुसार सृष्टियों के भिन्न-भिन्न नाम होते हैं। जैसाकि ऊपर कहा गया है, कुमारगणों की उत्पत्ति भौतिक जगत की कौमार-सृष्टि में हुई। उन्होंने हमें ब्रह्म-साक्षात्कार की विधि सिखाने के लिए स्वयं ब्रह्मचारी रहकर कठिन व्रत का पालन किया। ये सारे कुमार ‘शक्त्यावेश’ अवतार हैं। ये कठिन व्रत पालन करने के पूर्व ही योग्य ब्राह्मण बन चुके थे। इसी उदाहरण से यह सुझाव प्राप्त होता है कि मनुष्य को केवल जन्म से नहीं अपितु गुण से ब्राह्मण की योग्यताएँ प्राप्त कर लेनी चाहिए। तभी वह ब्रह्म-साक्षात्कार की प्रक्रिया में अपने को लगाए।
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to  वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
>  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥