श्रीमद् भागवतम
 
हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 4: श्री नारद का प्राकट्य  »  श्लोक 14
 
 
श्लोक  1.4.14 
सूत उवाच
द्वापरे समनुप्राप्ते तृतीये युगपर्यये ।
जात: पराशराद्योगी वासव्यां कलया हरे: ॥ १४ ॥
 
शब्दार्थ
सूत: उवाच—सूत गोस्वामी ने कहा; द्वापरे—द्वापर युग में; समनुप्राप्ते—आविर्भाव होने पर; तृतीये—तृतीय; युग—युग; पर्यये—के स्थान पर; जात:—प्रकट हुआ; पराशरात्—पराशर से; योगी—महान ऋषि; वासव्याम्—वसु की पुत्री के गर्भ में; कलया—पूर्ण अंश में; हरे:—भगवान् के ।.
 
अनुवाद
 
 सूत गोस्वामी ने कहा : जिस समय द्वापर युग का त्रेता युग से अतिव्यापन हो रहा था, तो वसु की पुत्री सत्यवती के गर्भ से पराशर द्वारा महान ऋषि (व्यासदेव) ने जन्म लिया।
 
तात्पर्य
 सत्य, द्वापर, त्रेता तथा कलि चारों युगों अर्थातं का एक कालक्रम होता है। लेकिन, कभी-कभी इनमें अतिव्यापन हो जाता हैं। वैवस्वत मनु के राज्य काल में चतुर्युगों के अट्ठाइसवें चक्र का अतिव्यापन हुआ था और तृतीय युग द्वितीय युग के पहले ही पड़ गया था। ऐसे युग में भगवान् श्रीकृष्ण भी अवतरित होते हैं और इसीलिए कुछ विशेष परिवर्तन हुआ था। महर्षि की माता सत्यवती, वसु (मछुवारे) की पुत्री थी और उनके पिता महामुनि पराशर थे। व्यासदेव के जन्म का यही इतिहास है। प्रत्येक युग तीन कालों में विभाजित होता है और हर काल संध्या कहलाता है। व्यासदेव उस युग की तृतीय संध्या में प्रकट हुए थे।
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
About Us | Terms & Conditions
Privacy Policy | Refund Policy
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥