काल की अप्रकट शक्तियाँ इतनी प्रबल होती हैं कि वे सारे पदार्थ को समय आने पर विस्मृति के गर्भ में डाल देती हैं। चतुर्युग चक्र के अन्तिम युग कलियुग में समय के प्रभाव से सारी भौतिक वस्तुओं की शक्ति का क्षय हो जाता है। इस युग में जनसामान्य की आयु काफी घट जाती है और उसी प्रकार से स्मरण शक्ति भी। पदार्थ की क्रिया की भी उतनी प्रेरणा नहीं रह पाती। धरती भी बीते युगों की भाँति उसी परिमाण में अन्न उत्पन्न नहीं कर पाती। गाएँ भी पूर्व युगों की भाँति दूध नहीं देतीं। शाकों तथा फलों का भी उत्पादन पहले से कम हो जाता है। इस प्रकार सारे जीव, चाहे मनुष्य हों या पशु, प्रचुर मात्रा में पौष्टिक भोजन नहीं पाते। जीवन की अनेकानेक आवश्यकताओं की चाहत के कारण स्वाभाविक रूप से आयु घट जाती है, स्मरण शक्ति कम हो जाती है, बुद्धि अल्प हो जाती है और पारस्परिक व्यवहार में दिखावा आ जाता है। महर्षि व्यासदेव अपनी दिव्य दृष्टि से इसे देख सके। जिस प्रकार कोई ज्योतिषी मनुष्य के भाग्य को देख सकता है या ज्योतिर्विद चन्द्र तथा सूर्य ग्रहणों की भविष्यवाणी कर सकता है, उसी प्रकार शास्त्रों के भीतर झाँक सकने वाले मुक्तात्मा सारी मानवता का भविष्य पहले से बता सकते हैं। वे अपनी आध्यात्मिक पैनी दृष्टि से यह सब देख सकते हैं।
इस प्रकार से ऐसे सारे अध्यात्मवादी, जो स्वभाविक रूप से भगवद्भक्त होते हैं, जनसामान्य का कल्याण करने के लिए सदैव उत्सुक रहते हैं। जनता के वास्तविक मित्र वे हैं, तथाकथित जन-नेता नहीं, जो यह भी नहीं जानते कि अगले पाँच मिनटों में क्या होने वाला है। इस युग में जनता तथा उनके तथाकथित नेता सभी अभागे व्यक्ति हैं, जिनकी अध्यात्म ज्ञान में कोई श्रद्धा नहीं होती और वे कलियुग द्वारा प्रभावित रहते हैं। वे नाना रोगों से व्याकुल होते रहते हैं। उदाहरणार्थ, आधुनिक युग में क्षय के रोगी हैं और क्षय रोग के अस्पताल भी अनेक हैं, लेकिन पूर्व काल में ऐसा नहीं था, क्योंकि समय इतना प्रतिकूल नहीं था। इस युग के अभागे लोग उन योगियों का स्वागत करते हुए कतराते हैं, जो श्रील व्यासदेव के प्रतिनिधि तथा नि:स्वार्थ कार्यकर्ता हैं, जो कुछ न कुछ योजना बनाने में लगे रहते हैं जिससे सभी वर्णों तथा आश्रमों के लोगों का लाभ हो सके। सबसे बड़े मानवतावादी तो वे योगी हैं जो व्यास, नारद, मध्व, चैतन्य, रूप, सरस्वती आदि के संदेश का प्रतिनिधित्व करते हैं। वे सब एक ही हैं। भले ही व्यक्ति भिन्न-भिन्न हों, लेकिन उनका उद्देश्य एक ही है कि पतितात्माओं को भगवद्धाम वापस भेज कर उनका उद्धार करना।