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श्लोक 1.4.21  |
तत्रर्ग्वेदधर: पैल: सामगो जैमिनि: कवि: ।
वैशम्पायन एवैको निष्णातो यजुषामुत ॥ २१ ॥ |
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शब्दार्थ |
तत्र—वहाँ; ऋग्-वेद-धर:—ऋग्वेद के आचार्य; पैल:—पैल नामक ऋषि; साम-ग:—सामवेद का; जैमिनि:—जैमिनि नामक ऋषि; कवि:—अत्यन्त योग्य; वैशम्पायन:—वैशम्पायन नामक ऋषि; एव—ही; एक:—अकेले; निष्णात:— पटु; यजुषाम्—यजुर्वेद के; उत—यशस्वी ।. |
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अनुवाद |
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वेदों के चार खण्डों में विभाजित हो जाने के बाद, पैल ऋषि ऋग्वेद के आचार्य बने और जैमिनि साम वेद के। यजुर्वेद के कारण एकमात्र वैशम्पायन यशस्वी हुए। |
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तात्पर्य |
विभिन्न वेदों को उनके बहुविध विकास के लिए विद्वान व्यक्तियों को सौंप दिया गया। |
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