वेदों के लिए जितनी बातों की आवश्यकता है, यद्यपि मैं उनसे पूर्णरूप से सज्जित हूँ, तथापि मैं अपूर्णता का अनुभव कर रहा हूँ।
तात्पर्य
निस्सन्देह, श्रील व्यासदेव वैदिक उपलब्धियों से परिपूर्ण थे। पदार्थ (जड़ता) में डूबे हुए जीव की शुद्धि वेद-वर्णित कृत्यों से ही सम्भव है, लेकिन चरम उपलब्धि तो भिन्न है। इसे प्राप्त किये बिना, जीव चाहे पूर्णरूप से सज्जित क्यों न हो, दिव्य स्थिति को प्राप्त नहीं कर सकता। ऐसा लगता है कि श्रील व्यासदेव ने संकेत खो दिया था, जिसके कारण वे असन्तुष्ट थे।
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