श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 4: श्री नारद का प्राकट्य  »  श्लोक 9
 
 
श्लोक  1.4.9 
अभिमन्युसुतं सूत प्राहुर्भागवतोत्तमम् ।
तस्य जन्म महाश्चर्यं कर्माणि च गृणीहि न: ॥ ९ ॥
 
शब्दार्थ
अभिमन्यु-सुतम्—अभिमन्यु के पुत्र को; सूत—हे सूत; प्राहु:—कहा जाता है; भागवत-उत्तमम्—प्रथम श्रेणी का भगवद् भक्त; तस्य—उसका; जन्म—जन्म; महा-आश्चर्यम्—अत्यन्त आश्चर्यजनक; कर्माणि—कर्म; च—तथा; गृणीहि— कृपया कहें; न:—हमसे ।.
 
अनुवाद
 
 कहा जाता है कि महाराज परीक्षित उच्च कोटि के भगवद्भक्त थे और उनके जन्म तथा कर्म अत्यन्त आश्चर्यजनक थे। कृपया उनके विषय में हमें बताएँ।
 
तात्पर्य
 महाराज परीक्षित का जन्म आश्चर्यजनक है, क्योंकि भगवान् श्रीकृष्ण ने उनकी रक्षा उनकी माता के गर्भ में की थी। उनके कार्यकलाप भी आश्चर्यजनक हैं, क्योंकि उन्होंने गाय का वध करने के लिए उद्यत कलि को प्रताडि़त किया। गाय का वध करने का अर्थ है, मानव सभ्यता का विनाश। वे पाप के उत्कट प्रतिनिधि से गाय की रक्षा करना चाहते थे। उनकी मृत्यु भी आश्चर्यजनक है, क्योंकि उन्हें मृत्यु की पूर्व-सूचना प्राप्त हो चुकी थी, जो किसी मर्त्य प्राणी के लिए आश्चर्यजनक है। इस तरह उन्होंने गंगा के तट पर आसीन होकर और भगवान् की दिव्य लीलाओं को सुनते हुए प्रयाण करने की तैयारी कर ली थी। जब तक वे भागवत का श्रवण करते रहे, उन्होंने न तो भोजन किया, न जल ग्रहण किया, न ही वे एक क्षण सोये। अत: उनकी सारी बातें आश्चर्यजनक हैं और उनके कार्यकलाप ध्यान से सुनने योग्य हैं। यहाँ पर उनके विषय में विस्तार से सुनने की इच्छा की गई है।
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥