सूत गोस्वामी ने कहा : इस तरह देवर्षि (नारद) सुखपूर्वक बैठ गये और मानो मुस्कराते हुए ब्रह्मर्षि (व्यासदेव) को सम्बोधित किया।
तात्पर्य
नारद मुस्करा रहे थे, क्योंकि वे महर्षि वेदव्यास को तथा उनके असन्तोष के कारण को भलीभाँति जानते थे। जैसाकि व्यासदेव आगे बतायेंगे, उनका असन्तोष भक्तियोग को सही ढंग से प्रस्तुत न करने के कारण उत्पन्न था। नारद को यह त्रुटि ज्ञात थी और व्यास की दशा से इसकी पुष्टि हो गई।
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