विचक्षण:—अत्यन्त पटु; अस्य—उसका; अर्हति—के योग्य है; वेदितुम्—जानने के लिए; विभो:—भगवान् का; अनन्त-पारस्य—असीम का; निवृत्तित:—से निवृत्त; सुखम्—भौतिक सुख; प्रवर्तमानस्य—अनुरक्तों का; गुणै:— भौतिक गुणों से; अनात्मन:—आध्यात्मिक ज्ञान से शून्य; तत:—अत:; भवान्—आप; दर्शय—मार्गदर्शन करें; चेष्टितम्—कार्यकलाप; विभो:—भगवान् के ।.
अनुवाद
भगवान् असीम हैं। केवल वही निपुण व्यक्ति इस आध्यात्मिक ज्ञान को समझने के लिए योग्य है, जो भौतिक सुख के कार्यकलापों से विरक्त हो चुका हो। अत: जो लोग भौतिक आसक्ति के कारण सुस्थापित नहीं हैं, उन्हीं को तुम परमेश्वर के दिव्य कार्यों के वर्णनों के माध्यम से दिव्य अनुभूति की विधियाँ दिखलाओ।
तात्पर्य
ईश्वरीय-विद्या का विज्ञान कठिन विषय है, विशेष रूप से जब उसमें भगवान् के दिव्य स्वभाव का वर्णन हो। यह ऐसा विषय नहीं है, जिसे भौतिक कार्यों में अत्यधिक आसक्त रहने वाले व्यक्ति समझ सकें। केवल वे ही इस महान विज्ञान का अध्ययन कर सकते हैं, जो आध्यात्मिक ज्ञान के अनुशीलन द्वारा भौतिक कार्यों से प्राय: निवृत्त हो चुके हैं। भगवद्गीता में स्पष्ट कहा गया है कि हजारों-लाखों व्यक्तियों में से कोई एक व्यक्ति ऐसा होता है, जो दिव्य अनुभूति में प्रवेश करने का अधिकारी होता है। और ऐसे हजारों स्वरूपसिद्ध व्यक्तियों में से कुछ ही व्यक्ति उस विशेष ईश्वरीय ज्ञान को समझ सकते हैं, जिसमें ईश्वर को पुरुष रूप में वर्णित किया जाता है। अतएव नारद श्री व्यासदेव को प्रत्यक्ष उपदेश देते हैं कि वे भगवान् की दिव्य लीलाओं को बताते हुए ईश्वर के विज्ञान का वर्णन करें। व्यासदेव स्वयं इस विज्ञान में पटु हैं और वे भौतिक भोग से विरक्त हैं; अतएव वे इसका वर्णन करने के अधिकारी व्यक्ति हैं और उनके पुत्र, शुकदेव गोस्वामी, उनसे इसे ग्रहण करने के लिए सही व्यक्ति हैं। श्रीमद्भागवत सर्वोत्कृष्ट ईश्वरीय विज्ञान है, अतएव यह जनसामान्य पर औषधि का सा प्रभाव दिखा सकता है। चूँकि इस ग्रंथ में भगवान् की दिव्य लीलाएँ हैं, अतएव भगवान् तथा इस ग्रंथ में कोई अन्तर नहीं है। यह ग्रंथ भगवान् का साहित्यावतार है। इस तरह निपट साधारण जन भी भगवान् की लीलाओं का वर्णन सुन सकते हैं। इससे वे भगवान् का सान्निध्य प्राप्त कर सकते हैं और इस तरह क्रमश: भवरोग से शुद्ध हो सकते हैं। यही नहीं, पटु भक्तगण ऐसी नवीन विधियाँ निकाल सकते हैं, जिनसे वे देश तथा काल के अनुसार अभक्तों को बदल सकें। भक्तिमय गतिशील सेवा प्रक्रिया है और पटु भक्तगण भौतिकतावादी जनता की मन्द बुद्धि में इसे प्रविष्ट कराने की कोई सरल विधि निकाल सकते हैं। भगवान् की सेवा के लिए भक्तों द्वारा सम्पन्न किये गये ऐसे दिव्य कार्यकलापों से भौतिकतावादी मनुष्यों के मूर्ख समाज में नवीन जीवन-व्यवस्था लाई जा सकती है। इस ओर भगवान् श्री चैतन्य महाप्रभु तथा उनके परवर्ती अनुयायियों ने विशेष दक्षता दिखलाई है। इस विधि का अनुगमन करते हुए इस कलह-प्रधान युग के भौतिकतावादी मनुष्यों को शान्तिमय जीवन तथा दिव्य अनुभूति की अवस्था प्रदान की जा सकती है।
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