श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 5: नारद द्वारा व्यासदेव को श्रीमद्भागवत के विषय में आदेश  »  श्लोक 30
 
 
श्लोक  1.5.30 
ज्ञानं गुह्यतमं यत्तत्साक्षाद्भ‍गवतोदितम् ।
अन्ववोचन् गमिष्यन्त: कृपया दीनवत्सला: ॥ ३० ॥
 
शब्दार्थ
ज्ञानम्—ज्ञान; गुह्यतमम्—गोपनीय; यत्—जो है; तत्—उस; साक्षात्—प्रत्यक्ष; भगवता उदितम्—स्वयं भगवान् द्वारा प्रतिपादित; अन्ववोचन्—उपदेश दिया; गमिष्यन्त:—जाते समय; कृपया—अहैतुकी कृपा से; दीन-वत्सला:—जो दीनों के प्रति अत्यन्त दयालु हैं ।.
 
अनुवाद
 
 दीन जनों पर अत्यन्त दयालु, उन भक्तिवेदान्तों ने जाते समय मुझे उस गुह्यतम विषय का उपदेश, जिसका उपदेश स्वयं भगवान् देते हैं।
 
तात्पर्य
 विशुद्ध वेदान्ती या भक्तिवेदान्त अपने अनुयायियों को स्वयं भगवान् के उपदेशों के मुताबिक ही उपदेश देता है। भगवान् ने भगवद्गीता में तथा अन्य सारे शास्त्रों में निश्चित रूप से यह उपदेश दिया है कि लोग उन्हीं का अनुगमन करें। भगवान् प्रत्येक वस्तु के सृष्टा, पालक तथा संहारक हैं। सारा दृश्य जगत उनकी इच्छा के बल पर अवस्थित है और जब उनकी इच्छा से सारा खेल समाप्त हो जाता है, तब वे अपनी सारी साज-सामग्री समेत अपने दिव्य धाम में बने रहते हैं। सृष्टि के पूर्व वे अपने इसी दिव्य धाम में थे और प्रलय के बाद भी वहीं बने ही रहेंगे। अतएव वे सृजित प्राणियों में से एक नहीं हैं। वे दिव्य हैं। भगवद्गीता में भगवान् कहते हैं कि अर्जुन को दिये गये उपदेश के भी बहुत पहले उन्होंने यही उपदेश सूर्यदेव को दिया था। चूँकि बीच में यह शृंखला टूट गई थी और यह उपदेश गलत तरीके से उपयोग में लाया जाने लगा था, अत: वही उपदेश अर्जुन को फिर से दिया गया, क्योंकि वह उनका परम भक्त एवं मित्र था। अतएव भगवान् का उपदेश भक्तों के अतिरिक्त अन्य कोई नहीं समझ सकता। भगवान् के दिव्य रूप का कोई अनुमान न होने के कारण निर्विशेषवादी भगवान् के इस गुह्यतम सन्देश को नहीं समझ पाते। यहाँ पर गुह्यतमम् शब्द अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि भक्ति का ज्ञान निर्गुण ब्रह्म के ज्ञान से बढक़र है। ज्ञानम् का अर्थ होता है, सामान्य ज्ञान या ज्ञान की कोई शाखा। यही ज्ञान विकसित होते हुए निर्गुण ब्रह्म के ज्ञान तक पहुँच जाता है। इसके ऊपर, जब इसमें कुछ-कुछ भक्ति मिल जाती है, तो यह परमात्मा का ज्ञान या सर्वव्यापी भगवान् का ज्ञान बन जाता है। यह अत्यन्त गुह्य है। किन्तु यदि यह ज्ञान शुद्ध भक्तिमय सेवा में परिणत हो जाता है और दिव्य ज्ञान का गुह्य अंश प्राप्त हो जाता है, तो यह गुह्यतम ज्ञान कहलाता है। भगवान् ने ब्रह्मा, अर्जुन, उद्धव इत्यादि को यह गुह्यतम ज्ञान प्रदान किया।
 
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