श्रीमद् भागवतम
 
हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 5: नारद द्वारा व्यासदेव को श्रीमद्भागवत के विषय में आदेश  »  श्लोक 4
 
 
श्लोक  1.5.4 
जिज्ञासितमधीतं च ब्रह्म यत्तत्सनातनम् ।
तथापि शोचस्यात्मानमकृतार्थ इव प्रभो ॥ ४ ॥
 
शब्दार्थ
जिज्ञासितम्—पूर्ण रूप से विचारा हुआ; अधीतम्—प्राप्त ज्ञान; च—तथा; ब्रह्म—परम, ब्रह्म; यत्—जो; तत्—उस; सनातनम्—शाश्वत को; तथापि—फिर भी; शोचसि—पश्चात्ताप करते हो; आत्मानम्—अपने आपको; अकृत-अर्थ:— व्यर्थ; इव—सदृश; प्रभो—हे महाशय ।.
 
अनुवाद
 
 तुमने निराकार ब्रह्म विषयक एवं उससे प्राप्त होने वाले ज्ञान को भलीभाँति लिपिबद्ध किया है। तो इतना सब होते हुए, हे मेरे प्रभु,अपने को व्यर्थ समझ कर हताश होने की क्या बात है?
 
तात्पर्य
 वेदान्त-सूत्र या ब्रह्म-सूत्र का संकलन श्री व्यासदेव ने किया है और उसमें निर्गुण ब्रह्म की पूर्ण चर्चा की गई है और यह विश्व की सर्वाधिक सम्मानित दार्शनिक व्याख्या मानी जाती है। इसमें विषय को समेटा गया है और इसकी प्रतिपादन-शैली पाण्डित्यपूर्ण है। अतएव व्यासदेव के दिव्य पाण्डित्य के विषय में सन्देह करने का प्रश्न ही नहीं उठता। तो फिर उन्हें इस प्रकार शोक क्यों करना चाहिए?
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
About Us | Terms & Conditions
Privacy Policy | Refund Policy
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥