श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 5: नारद द्वारा व्यासदेव को श्रीमद्भागवत के विषय में आदेश  »  श्लोक 6
 
 
श्लोक  1.5.6 
स वै भवान् वेद समस्तगुह्य-
मुपासितो यत्पुरुष: पुराण: ।
परावरेशो मनसैव विश्वं
सृजत्यवत्यत्ति गुणैरसङ्ग: ॥ ६ ॥
 
शब्दार्थ
स:—इस तरह; वै—निश्चय ही; भवान्—आप; वेद—जानते हैं; समस्त—समग्र; गुह्यम्—गोपनीय; उपासित:—पूजित; यत्—क्योंकि; पुरुष:—भगवान्; पुराण:—प्राचीनतम्,पुरातन; परावरेश:—भौतिक तथा आध्यात्मिक जगतों के नियन्ता; मनसा—मन से; एव—केवल; विश्वम्—ब्रह्माण्ड को; सृजति—उत्पन्न करते हैं; अवति अत्ति—संहार करते हैं; गुणै:—गुणात्मक पदार्थ से; असङ्ग:—निर्लिप्त ।.
 
अनुवाद
 
 हे प्रभो, जो कुछ भी गोपनीय है वह आपको ज्ञात है, क्योंकि आप भौतिक जगत के सृष्टा तथा संहारक एवं आध्यात्मिक जगत के पालक आदि भगवान् की पूजा करते हैं जो भौतिक प्रकृति के तीनों गुणों से परे हैं।
 
तात्पर्य
 जो व्यक्ति भगवान् की सेवा में शत-प्रतिशत लगा रहता है, वह समस्त ज्ञान का प्रतीक होता है। ऐसा व्यक्ति जो भक्तिमय सेवा में तो पूर्ण रहता ही है, वह भगवान् के गुणों से भी पूर्ण हो जाता है। इस तरह अष्ट सिद्धियाँ उसके समक्ष नगण्य पड़ जाती हैं। नारद जैसे भक्त अपनी आध्यात्मिक सिद्धि से विलक्षण कार्य कर सकते हैं, जिसे प्राप्त करने के लिए प्रत्येक व्यक्ति प्रयास कर रहा है। श्रील नारद शत-प्रतिशत पूर्ण जीव हैं, यद्यपि वे भगवान् के समान नहीं हैं।
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥