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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 6: नारद तथा व्यासदेव का संवाद  »  श्लोक 1
 
 
श्लोक  1.6.1 
सूत उवाच
एवं निशम्य भगवान्देवर्षेर्जन्म कर्म च ।
भूय: पप्रच्छ तं ब्रह्मन् व्यास: सत्यवतीसुत: ॥ १ ॥
 
शब्दार्थ
सूत: उवाच—सूत ने कहा; एवम्—इस प्रकार; निशम्य—सुनकर; भगवान्—ईश्वर का शक्त्यावेश अवतार; देवर्षे:— देवर्षि का; जन्म—जन्म; कर्म—कर्म; —तथा; भूय:—पुन:; पप्रच्छ—पूछा; तम्—उनसे; ब्रह्मन्—हे ब्राह्मणो; व्यास:—व्यासदेव ने; सत्यवती-सुत:—सत्यवती का पुत्र ।.
 
अनुवाद
 
 सूत ने कहा : हे ब्राह्मणो, इस तरह श्री नारद के जन्म तथा कार्यकलापों के विषय में सब कुछ सुन लेने के बाद ईश्वर के अवतार तथा सत्यवती के पुत्र, श्री व्यासदेव ने इस प्रकार पूछा।
 
तात्पर्य
 व्यासदेव नारदजी की सिद्धि के विषय में आगे भी जानने के इच्छुक थे, अत: उन्होंने उनके विषय में और अधिक जानना चाहा। इस अध्याय में नारद जी बताएँगे कि जब वे भगवान् के विरह भाव में लीन थे और अत्यन्त कष्ट का अनुभव कर रहे थे, तब भगवान् ने किस प्रकार उन्हें थोड़ी देर के लिए दर्शन दिया।
 
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