श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 6: नारद तथा व्यासदेव का संवाद  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  1.6.10 
तदा तदहमीशस्य भक्तानां शमभीप्सत: ।
अनुग्रहं मन्यमान: प्रातिष्ठं दिशमुत्तराम् ॥ १० ॥
 
शब्दार्थ
तदा—उस समय; तत्—उस; अहम्—मैंने; ईशस्य—ईश्वर के; भक्तानाम्—भक्तों की; शम्—दया; अभीप्सत:—चाहते हुए; अनुग्रहम्—विशेष आशीष; मन्यमान:—इस प्रकार सोचता हुआ; प्रातिष्ठम्—प्रस्थान किया; दिशम् उत्तराम्—उत्तर दिशा में ।.
 
अनुवाद
 
 मैंने इसे भगवान् की विशेष कृपा माना, क्योंकि वे अपने भक्तों का भला चाहने वाले हैं और इस प्रकार सोचता हुआ मैं उत्तर की ओर चल पड़ा।
 
तात्पर्य
 भगवान् के विश्वस्त भक्त पग पग को भगवान् का वरदायक आदेश समझते हैं। जिसे लौकिक दृष्टि से विषम या कठिन क्षण समझा जाता है, उसे भगवान् की विशेष कृपा के रूप में स्वीकार किया जाता है। लौकिक समृद्धि एक प्रकार का भौतिक ज्वर है, किन्तु भगवान् के अनुग्रह से इस ज्वर का तापमान धीरे धीरे गिरता जाता है और पद पद पर आध्यात्मिक स्वास्थ्य लाभ होता रहता है। संसारी लोग इसका गलत अर्थ लगाते हैं।
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥