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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 6: नारद तथा व्यासदेव का संवाद  »  श्लोक 2
 
 
श्लोक  1.6.2 
व्यास उवाच
भिक्षुभिर्विप्रवसिते विज्ञानादेष्टृभिस्तव ।
वर्तमानो वयस्याद्ये तत: किमकरोद्भ‍वान् ॥ २ ॥
 
शब्दार्थ
व्यास: उवाच—श्री व्यासदेव ने कहा; भिक्षुभि:—महान साधुओं द्वारा; विप्रवसिते—अन्य स्थानों को चले जाने पर; विज्ञान—अध्यात्म का वैज्ञानिक ज्ञान; आदेष्टृभि:—जिन्होंने उपदेश दिया था; तव—आपका; वर्तमान:—वर्तमान; वयसि—आयु के; आद्ये—प्रारम्भ में; तत:—तत्पश्चात्; किम्—क्या; अकरोत्—किया; भवान्—आपने ।.
 
अनुवाद
 
 श्री व्यासदेव ने (नारद जी से) कहा : आपने उन महामुनियों के चले जाने पर क्या किया जिन्होंने आपके इस जन्म के प्रारम्भ होने से पूर्व आपको दिव्य वैज्ञानिक ज्ञान प्रदान किया था?
 
तात्पर्य
 व्यासदेव स्वयं नारद जी के शिष्य थे, अतएव गुरु से दीक्षित होने के बाद नारद ने जो कुछ किया, उसे सुनने की उत्कंठा स्वाभाविक थी। वे नारद की ही भाँति सिद्धावस्था प्राप्त करने के लिए उनके चरणचिह्नों का अनुसरण करना चाह रहे थे। आध्यात्मिक गुरु से पूछने की आकांक्षा (जिज्ञासा) प्रगति पथ पर बढऩे के लिए आवश्यक है। इस विधि का शास्त्रीय नाम सद्धर्मपृच्छा है।
 
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