श्री व्यासदेव ने (नारद जी से) कहा : आपने उन महामुनियों के चले जाने पर क्या किया जिन्होंने आपके इस जन्म के प्रारम्भ होने से पूर्व आपको दिव्य वैज्ञानिक ज्ञान प्रदान किया था?
तात्पर्य
व्यासदेव स्वयं नारद जी के शिष्य थे, अतएव गुरु से दीक्षित होने के बाद नारद ने जो कुछ किया, उसे सुनने की उत्कंठा स्वाभाविक थी। वे नारद की ही भाँति सिद्धावस्था प्राप्त करने के लिए उनके चरणचिह्नों का अनुसरण करना चाह रहे थे। आध्यात्मिक गुरु से पूछने की आकांक्षा (जिज्ञासा) प्रगति पथ पर बढऩे के लिए आवश्यक है। इस विधि का शास्त्रीय नाम सद्धर्मपृच्छा है।
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