कल्प के अन्त में जब भगवान् नारायण प्रलय के जल में लेट गये, तब ब्रह्माजी समस्त सृष्टिकारी तत्त्वों सहित उनके भीतर प्रवेश करने लगे और उनके श्वास से मैं भी भीतर चला गया।
तात्पर्य
नारद ब्रह्मा के पुत्र के रूप में उसी तरह विख्यात हैं, जिस प्रकार भगवान् कृष्ण वसुदेव के पुत्र-रूप में। भगवान् तथा नारद जैसे उनके मुक्त भक्तगण इस संसार में एक ही विधि से प्रकट होते हैं। जैसा कि भगवद्गीता में कहा गया है, भगवान् का जन्म तथा उनके कार्य- कलाप सभी दिव्य होते हैं। अत: प्रामाणिक अभिमत के अनुसार, ब्रह्मा के पुत्र के रूप में नारद का जन्म भी दिव्य लीला है। उनका प्राकट्य तथा तिरोधान व्यावहारिक रूप से भगवान् के समस्तरीय हैं। अत: भगवान् तथा उनके भक्त दिव्य व्यक्ति के रूप में एकसाथ एकमेव तथा भिन्न हैं। वे एक ही कोटि की दिव्यता से सम्बन्धित हैं।
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