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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 6: नारद तथा व्यासदेव का संवाद  »  श्लोक 3
 
 
श्लोक  1.6.3 
स्वायम्भुव कया वृत्त्या वर्तितं ते परं वय: ।
कथं चेदमुदस्राक्षी: काले प्राप्ते कलेवरम् ॥ ३ ॥
 
शब्दार्थ
स्वायम्भुव—हे ब्रह्मा के पुत्र; कया—किस परिस्थिति में; वृत्त्या—वृत्ति; वर्तितम्—बिताया; ते—आपने; परम्—दीक्षा के बाद; वय:—आयु; कथम्—कैसे; —तथा; इदम्—यह; उदस्राक्षी:—छोड़ा; काले—समय आने पर, यथासमय; प्राप्ते—प्राप्त होने पर; कलेवरम्—शरीर को ।.
 
अनुवाद
 
 हे ब्रह्मा के पुत्र, आपने दीक्षा लेने के बाद किस प्रकार जीवन बिताया? और यथासमय अपने पुराने शरीर को त्याग कर आपने यह शरीर कैसे प्राप्त किया?
 
तात्पर्य
 पूर्वजन्म में नारद मुनि एक सामान्य दासीपुत्र थे, अत: वे शाश्वत जीवन, आनन्द तथा ज्ञान से परिपूर्ण इस स्वरूप को किस प्रकार प्राप्त कर सके, यह जानना महत्त्वपूर्ण है। श्री व्यासदेव ने इच्छा की, कि नारद जी ये सारे तथ्य सबों की तुष्टि के लिए प्रकट करें।
 
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