श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 6: नारद तथा व्यासदेव का संवाद  »  श्लोक 5
 
 
श्लोक  1.6.5 
नारद उवाच
भिक्षुभिर्विप्रवसिते विज्ञानादेष्टृभिर्मम ।
वर्तमानो वयस्याद्ये तत एतदकारषम् ॥ ५ ॥
 
शब्दार्थ
नारद: उवाच—श्री नारद ने कहा; भिक्षुभि:—मुनियों के द्वारा; विप्रवसिते—अन्य स्थान को चले जाने पर; विज्ञान— व्यावहारिक आध्यात्मिक ज्ञान; आदेष्टृभि:—जिन्होंने मुझे प्रदान किया था; मम—मेरा; वर्तमान:—वर्तमान; वयसि आद्ये—इस जीवन के पूर्व; तत:—तत्पश्चात्; एतत्—इतना; अकारषम्—सम्पन्न किया ।.
 
अनुवाद
 
 श्री नारद ने कहा : जिन महर्षियों ने मुझे अध्यात्म का व्यावहारिक ज्ञान प्रदान किया था, वे अन्य स्थानों को चले गये और मुझे इस प्रकार से अपना जीवन बिताना पड़ा।
 
तात्पर्य
 पूर्वजन्म में जब नारदजी को महर्षियों ने कृपापूर्वक आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान किया था, तो उनके जीवन में प्रत्यक्ष परिवर्तन आया था, यद्यपि वे तब पाँच वर्ष के बालक थे। प्रामाणिक गुरु से दीक्षा प्राप्त करने के बाद दिखाई देने वाला यह महत्त्वपूर्ण लक्षण है। भक्तों की वास्तविक संगति से जीवन में आध्यात्मिक अनुभूति के लिए तेजी से परिवर्तन आता है। नारद मुनि के पूर्व जीवन में यह कैसे घटा इसका एक-एक करके इस अध्याय में वर्णन किया गया है।
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥