अहं च तद्ब्रह्मकुले ऊषिवांस्तदुपेक्षया ।
दिग्देशकालाव्युत्पन्नो बालक: पञ्चहायन: ॥ ८ ॥
शब्दार्थ
अहम्—मैं; च—भी; तत्—उस; ब्रह्म-कुले—ब्राह्मणों की पाठशाला में; ऊषिवान्—रहता था; तत्—उसका; उपेक्षया—आश्रित; दिक्-देश—दिशा तथा देश; काल—समय; अव्युत्पन्न:—अनुभवविहीन; बालक:—मात्र बालक; पञ्च—पाँच; हायन:—वर्ष का ।.
अनुवाद
जब मैं केवल पाँच वर्ष का बालक था, तो एक ब्राह्मण की पाठशाला में रहता था। मैं अपनी माता के स्नेह पर आश्रित था और मुझे विभिन्न क्षेत्रों का कोई अनुभव न था।
____________________________
All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥