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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 7: द्रोण-पुत्र को दण्ड  »  श्लोक 12
 
 
श्लोक  1.7.12 
परीक्षितोऽथ राजर्षेर्जन्मकर्मविलापनम् ।
संस्थां च पाण्डुपुत्राणां वक्ष्ये कृष्णकथोदयम् ॥ १२ ॥
 
शब्दार्थ
परीक्षित:—राजा परीक्षित का; अथ—इस प्रकार; राजर्षे:—राजा का, जो राजाओं में ऋषि था; जन्म—जन्म; कर्म— कर्म; विलापनम्—उद्धार, मोक्ष; संस्थाम्—संसार का परित्याग; —तथा; पाण्डु-पुत्राणाम्—पाण्डु के पुत्रों का; वक्ष्ये—में कहूँगा; कृष्ण-कथा-उदयम्—जो भगवान् श्रीकृष्ण की दिव्य कथा को जन्म देने वाला है ।.
 
अनुवाद
 
 सूत गोस्वामी ने शौनक आदि ऋषियों को सम्बोधित किया : अब मैं भगवान् श्रीकृष्ण की दिव्य कथा तथा राजर्षि परीक्षित महाराज के जन्म, कार्यकलाप तथा मोक्ष विषयक वार्ताएँ एवं पाण्डुपुत्रों द्वारा गृहस्थाश्रम के त्याग की कथाएँ कहने जा रहा हूँ।
 
तात्पर्य
 भगवान् कृष्ण पतितात्माओं पर इतने दयालु हैं कि वे विभिन्न जीवों के मध्य स्वयं अवतरित होते हैं और उनके दैनिक कार्यकलापों में भाग लेते हैं। कोई भी ऐतिहासिक तथ्य, चाहे पुराना हो या नया, यदि उसका सम्बन्ध कृष्ण की लीलाओं से है, तो उसे भगवान् की दिव्य कथा समझना चाहिए। कृष्ण के बिना पुराण तथा महाभारत जैसे पूरक ग्रंथ निरी कहानियाँ या ऐतिहासिक तथ्य हैं। लेकिन कृष्ण के होने से वे दिव्य बन जाते हैं और उनका श्रवण करते ही हम भगवान् से दिव्य रूप से जुड़ जाते हैं। श्रीमद्भागवत भी एक पुराण है, लेकिन इस पुराण का विशेष महत्त्व यह है कि इसमें कृष्ण की लीलाएँ, केवल पूरक ऐतिहासिक तथ्य नहीं हैं, वरन ये ही केन्द्रबिन्दु हैं। इसीलिए भगवान् श्री चैतन्य महाप्रभु ने श्रीमद्भागवत की संस्तुति निष्कलुष पुराण के रूप में की है। लेकिन भागवत पुराण के अल्पज्ञ भक्तों का एक ऐसा वर्ग है, जो प्रारम्भिक स्कंधों को पहले समझे बिना सीधे दशम स्कंध में वर्णित भगवान् की लीलाओं का आस्वाद लेना चाहते हैं। उनकी यह भ्रान्त धारणा होती है कि अन्य स्कंध भगवान् से सम्बद्ध नहीं हैं, अतएव वे मूर्खतावश दशम स्कंध को ही पढऩे लगते हैं। इन पाठकों को यहाँ पर विशेष रूप से बताया जा रहा है कि भागवत के अन्य स्कंध भी दशम स्कंध की ही भाँति महत्त्वपूर्ण हैं। पाठकों को चाहिए कि अन्य नौ स्कन्धों का तात्पर्य समझे बिना वे दशम स्कंध की विषय वस्तु में प्रवेश करने का प्रयत्न न करें। कृष्ण तथा पाण्डवों जैसे उनके शुद्ध भक्त एकसमान धरातल पर हैं। कृष्ण समस्त रसों में स्थित अपने भक्तों से रहित नहीं होते और पाण्डव जैसे शुद्ध भक्त भी कृष्ण से रहित नहीं हैं। भक्त तथा भगवान् परस्पर जुड़े हुए हैं और उन्हें विलग नहीं किये जा सकते। अतएव उनसे सम्बन्धित सभी बातें कृष्ण कथा ही हैं।
 
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