श्रीमद् भागवतम
 
हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 7: द्रोण-पुत्र को दण्ड  »  श्लोक 13-14
 
 
श्लोक  1.7.13-14 
यदा मृधे कौरवसृञ्जयानां
वीरेष्वथो वीरगतिं गतेषु ।
वृकोदराविद्धगदाभिमर्श-
भग्नोरुदण्डे धृतराष्ट्रपुत्रे ॥ १३ ॥
भर्तु: प्रियं द्रौणिरिति स्म पश्यन्
कृष्णासुतानां स्वपतां शिरांसि ।
उपाहरद्विप्रियमेव तस्य
जुगुप्सितं कर्म विगर्हयन्ति ॥ १४ ॥
 
शब्दार्थ
यदा—जब; मृधे—युद्धभूमि में; कौरव—धृतराष्ट्र के पक्ष वाले; सृञ्जयानाम्—पाण्डवों के पक्ष के; वीरेषु—योद्धाओं में; अथो—इस तरह; वीर-गतिम्—योद्धाओं के योग्य स्थान; गतेषु—प्राप्त करने पर; वृकोदर—भीम; आविद्ध—प्रताडि़त; गदा—गदा से; अभिमर्श—विलाप करते; भग्न—टूटा; उरु-दण्डे—मेरु दण्ड; धृतराष्ट्र-पुत्रे—राजा धृतराष्ट्र का पुत्र; भर्तु:—स्वामी का; प्रियम्—प्यारा; द्रौणि:—द्रोणाचार्य का पुत्र; इति—इस प्रकार; स्म—होगा; पश्यन्—देखते हुए; कृष्णा—द्रौपदी के; सुतानाम्—पुत्रों का; स्वपताम्—सोते हुए; शिरांसि—शिर; उपाहरत्—पुरस्कार के रूप में प्रदान किया; विप्रियम्—सुखद; एव—सदृश; तस्य—उसका; जुगुप्सितम्—अत्यन्त नृशंस; कर्म—कार्य; विगर्हयन्ति—भर्त्सना करते हैं ।.
 
अनुवाद
 
 जब दोनों दलों अर्थात् कौरवों तथा पाण्डवों के अपने-अपने योद्धागण कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में मारे जा चुके और मृत योद्धाओं को उनकी इच्छित गति प्राप्त हो गई और जब भीमसेन की गदा के प्रहार से मेरुदण्ड टूट जाने से धृतराष्ट्र का पुत्र विलाप करता गिर पड़ा, तो द्रोणाचार्य के पुत्र (अश्वत्थामा) ने द्रौपदी के सोते हुए पाँचों पुत्रों के सिरों को काटकर मूर्खतावश उन्हें उपहारस्वरूप यह सोचते हुए उसे अर्पित किया कि इससे उसका स्वामी प्रसन्न होगा। लेकिन दुर्योधन ने इस जघन्य कृत्य की निन्दा की और वह तनिक भी प्रसन्न न हुआ।
 
तात्पर्य
 श्रीमद्भागवत में भगवान् श्रीकृष्ण की लीलाओं की दिव्य कथा कुरुक्षेत्र के युद्ध के समाप्त होने से प्रारम्भ होती है जहाँ भगवान् ने स्वयं भगवद्गीता में अपने विषय में कहा है। अतएव भगवद्गीता तथा श्रीमद्भागवत दोनों ही भगवान् की दिव्य कथाएँ हैं। गीता कृष्ण-कथा है, क्योंकि यह भगवान् द्वारा कही गई है और भागवत भी कृष्ण-कथा है, क्योंकि यह कृष्ण के विषय में कही गयी कथा है। भगवान् श्री चैतन्य महाप्रभु चाहते थे कि प्रत्येक व्यक्ति इन दोनों कृष्ण-कथाओं के विषय में जाने। भगवान् कृष्ण चैतन्य, भगवान् कृष्ण के भक्त के वेश में, साक्षात् कृष्ण हैं, अतएव भगवान् कृष्ण तथा श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु दोनों के मंतव्य समान हैं। भगवान् चैतन्य की इच्छा थी कि जिन्होंने भारत में जन्म लिया है, वे सारे लोग इन कृष्ण-कथाओं को गम्भीरतापूर्वक समझें और पूर्ण अनुभूति होने के बाद विश्व के प्रत्येक भाग में इस दिव्य सन्देश का प्रचार करें। इससे त्रस्त विश्व में वांछित शान्ति तथा सम्पन्नता प्राप्त हो सकेगी।
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
About Us | Terms & Conditions
Privacy Policy | Refund Policy
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥