श्रीमद् भागवतम
 
हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 7: द्रोण-पुत्र को दण्ड  »  श्लोक 18
 
 
श्लोक  1.7.18 
तमापतन्तं स विलक्ष्य दूरात्
कुमारहोद्विग्नमना रथेन ।
पराद्रवत्प्राणपरीप्सुरुर्व्यां
यावद्गमं रुद्रभयाद्यथा क: ॥ १८ ॥
 
शब्दार्थ
तम्—उसको; आपतन्तम्—क्रोध से आते हुए; स:—उसने; विलक्ष्य—देखकर; दूरात्—दूर से ही; कुमार-हा— राजकुमारों का हत्यारा; उद्विग्न-मना:—मन में विचलित; रथेन—रथ पर; पराद्रवत्—भाग चला; प्राण—प्राण की; परीप्सु:—रक्षा करने के लिए; उर्व्याम्—तेज गति से; यावत्-गमम्—ज्योंही वह भागा; रुद्र-भयात्—शिव के भय से; यथा—जिस प्रकार; क:—ब्रह्मा (या अर्क: ।.
 
अनुवाद
 
 राजकुमारों का हत्यारा, अश्वत्थामा, अर्जुन को दूर से ही अपनी ओर तेजी से आते हुए देखकर अपने रथ पर सवार होकर डर के मारे अपनी जान बचाने के लिए उसी तरह भाग निकला, जिस प्रकार शिवजी के भय से ब्रह्माजी भागे थे।
 
तात्पर्य
 पुराणों की पाठ्य सामग्री के अनुसार क: या अर्क: के दो सन्दर्भ मिलते हैं। क: का अर्थ ब्रह्मा है जिन्होंने एक बार अपनी पुत्री से मोहित होने पर उसका पीछा किया, जिससे शिवजी कुपित हो गये और उन्होंने ब्रह्मा पर अपने त्रिशूल से आक्रमण कर दिया। ब्रह्माजी अपने प्राणों के भय से भाग गए। जहाँ तक अर्क: का सम्बन्ध है, वामन पुराण में एक प्रसंग मिलता है। विद्युन्माली नाम का एक असुर था, जिसे एक चमचमाता सुनहरा वायुयान दिया गया था, जो सूर्य के पीछे पीछे यात्रा कर रहा था और उसके प्रकाश से रात्रि भाग जाती थी। इसके कारण सूर्यदेव क्रुद्ध हो गये और उन्होंने अपनी प्रखर किरणों से वायुयान को पिघला डाला। इससे शिवजी कुपित हो गये और उन्होंने सूर्यदेव पर आक्रमण कर दिया। सूर्यदेव भाग गये और अन्त में काशी (वाराणसी) में गिर पड़े। वह स्थान लोलार्क के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
About Us | Terms & Conditions
Privacy Policy | Refund Policy
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥