अर्जुन उवाच
कृष्ण कृष्ण महाबाहो भक्तानामभयङ्कर ।
त्वमेको दह्यमानानामपवर्गोऽसि संसृते: ॥ २२ ॥
शब्दार्थ
अर्जुन: उवाच—अर्जुन ने कहा; कृष्ण—हे भगवान् कृष्ण; कृष्ण—हे भगवान् कृष्ण; महा-बाहो—सर्वशक्तिमान; भक्तानाम्—भक्तों के; अभयङ्कर—भय को भगाने वाले; त्वम्—आप; एक:—एकमात्र; दह्यमानानाम्—कष्ट उठाने वालों के; अपवर्ग:—मोक्ष पथ; असि—हो; संसृते:—भौतिक कष्टों के बीच में ।.
अनुवाद
अर्जुन ने कहा : हे भगवान् श्रीकृष्ण, आप सर्वशक्तिमान परमेश्वर हैं। आपकी विविध शक्तियों की कोई सीमा नहीं है। अतएव एकमात्र आप ही अपने भक्तों के हृदयों में अभय उत्पन्न करने में समर्थ हैं। भौतिक कष्टों की ज्वालाओं में फँसे सारे लोग केवल आपमें ही मोक्ष का मार्ग पा सकते हैं।
तात्पर्य
अर्जुन भगवान् श्रीकृष्ण के दिव्य गुणों से अवगत था, क्योंकि कुरुक्षेत्र के युद्ध में वे दोनों साथ-साथ उपस्थित थे, तभी इसका अनुभव उसे हो चुका था। अतएव कृष्ण के विषय में अर्जुन का कथन प्रामाणिक है। कृष्ण सर्वशक्तिमान हैं और भक्तों की निर्भयता के कारण स्वरूप हैं। भगवद्भक्त सदैव निर्भय रहता है, क्योंकि भगवान् उसकी रक्षा करते हैं। यह भौतिक संसार जंगल में धधकती अग्नि के समान है, जिसका शमन भगवान् श्रीकृष्ण की कृपा से ही सम्भव है। गुरु भगवान् की कृपा के प्रतिनिधि होते हैं। अतएव भौतिक अस्तित्व की ज्वालाओं में जलता हुआ व्यक्ति, स्वरूपसिद्ध गुरु के पारदर्शी माध्यम से ही भगवान् की कृपा रूपी वर्षा प्राप्त कर सकता है। गुरु अपनी वाणी के द्वारा पीडि़त व्यक्ति के हृदय में प्रवेश करके दिव्य ज्ञान प्रदान कर सकते हैं, जिससे भौतिक संसार की अग्नि बुझ सकती है।
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