श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 7: द्रोण-पुत्र को दण्ड  »  श्लोक 27
 
 
श्लोक  1.7.27 
श्रीभगवानुवाच
वेत्थेदं द्रोणपुत्रस्य ब्राह्ममस्त्रं प्रदर्शितम् ।
नैवासौ वेद संहारं प्राणबाध उपस्थिते ॥ २७ ॥
 
शब्दार्थ
श्री-भगवान्—पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् ने; उवाच—कहा; वेत्थ—मुझसे जानो; इदम्—यह; द्रोण-पुत्रस्य—द्रोण पुत्र का; ब्राह्मम् अस्त्रम्—ब्राह्म (आणविक) अस्त्र का मंत्र; प्रदर्शितम्—प्रदर्शित; न—नहीं; एव—भी; असौ—वह; वेद— यह जानो; संहारम्—लौटाना; प्राण-बाधे—जीवन का विलोप; उपस्थिते—उपस्थित होने पर ।.
 
अनुवाद
 
 पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् ने कहा : तुम मुझ से यह जान लो कि यह द्रोण के पुत्र का कार्य है। उसने आणविक शक्ति के मंत्र (ब्रह्मास्त्र) का प्रहार किया है और वह यह नहीं जानता कि उसकी चौंधको कैसे लौटाया जाय। उसने निरुपाय होकर आसन्न मृत्यु के भय से ऐसा किया है।
 
तात्पर्य
 ब्रह्मास्त्र आधुनिक आणविक हथियार की भाँति है, जिसका संचालन परमाणु ऊर्जा से किया जाता है। परमाणु शक्ति पूर्ण दहनशीलता पर आधारित है और ब्रह्मास्त्र भी इसी तरह चलता है। यह परमाणु-विकिरणों के समान ही असह्य ताप उत्पन्न करता है, लेकिन अन्तर इतना है कि परमाणु बम एक स्थूल नाभिकीय हथियार है जबकि ब्रह्मास्त्र सूक्ष्म हथियार है जिसे मन्त्र पढक़र उत्पन्न किया जाता है। यह सर्वथा भिन्न विज्ञान है और प्राचीन काल में भारतवर्ष में ऐसे विज्ञान का अनुशीलन होता था। मन्त्रोच्चार का यह सूक्ष्म विज्ञान भी भौतिक है, लेकिन अभी भी आधुनिक भौतिक विज्ञानियों द्वारा इसको जानना शेष है। सूक्ष्म भौतिक विज्ञान कभी आध्यात्मिक नहीं होता, लेकिन आध्यात्मिक विधि से इसका प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है, जो और भी अधिक सूक्ष्म है। मंत्र का उच्चारण करने वाला जानता था कि अस्त्र को किस प्रकार छोड़ा जाय और फिर उसे किस प्रकार वापस लाया जाय। यह पूर्ण ज्ञान था। लेकिन इस सूक्ष्म विज्ञान का प्रयोग करने वाला द्रोण-पुत्र यह नहीं जानता था कि किस प्रकार उसे लौटाया जाय। उसने अपनी मृत्यु को आया देख भयभीत होकर इसका व्यवहार तो किया, लेकिन यह प्रथा न केवल अनुचित वरन् धर्मविरुद्ध भी थी। ब्राह्मण पुत्र होने के नाते, उसे इतनी सारी त्रुटियाँ नहीं करनी थीं और कर्तव्य की ऐसी सरासर उपेक्षा के लिए उसे स्वयं भगवान् द्वारा दण्डित होना था।
 
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