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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 7: द्रोण-पुत्र को दण्ड  »  श्लोक 47
 
 
श्लोक  1.7.47 
मा रोदीदस्य जननी गौतमी पतिदेवता ।
यथाहं मृतवत्सार्ता रोदिम्यश्रुमुखी मुहु: ॥ ४७ ॥
 
शब्दार्थ
मा—नहीं; रोदीत्—रोए; अस्य—इसकी; जननी—माता; गौतमी—द्रोण-पत्नी; पति-देवता—पतिव्रता; यथा—जैसा कि; अहम्—मैं; मृत-वत्सा—जिसका पुत्र मर चुका है; आर्ता—दुखी; रोदिमि—रोती हुई; अश्रु-मुखी—आँखों में अश्रु भरे; मुहु:—निरन्तर ।.
 
अनुवाद
 
 हे स्वामी, द्रोणाचार्य की पत्नी को मेरे समान मत रुलाओ। मैं अपने पुत्रों की मृत्यु के लिए संतप्त हूँ। कहीं उसे भी मेरे समान निरन्तर रोना न पड़े।
 
तात्पर्य
 करुणामयी उत्तम नारी होने के कारण श्रीमती द्रौपदी माता की अनुभूतियों और द्रोणाचार्य की पत्नी जीवित होने से उनका पूज्य पद होने की दृष्टि से नहीं चाह रही थी कि द्रोणाचार्य की पत्नी भी उन्हीं की तरह संतति विहीन हों।
 
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>  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥