श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 7: द्रोण-पुत्र को दण्ड  »  श्लोक 56
 
 
श्लोक  1.7.56 
विमुच्य रशनाबद्धं बालहत्याहतप्रभम् ।
तेजसा मणिना हीनं शिबिरान्निरयापयत् ॥ ५६ ॥
 
शब्दार्थ
विमुच्य—उसे छोड़ देने पर; रशना-बद्धम्—रस्सियों के बन्धन से; बाल-हत्या—बालकों के वध से; हत-प्रभम्— शारीरिक कान्ति का क्षय; तेजसा—शक्ति से; मणिना—मणि से; हीनम्—रहित; शिबिरात्—शिविर से; निरयापयत्— निकाल भगाया ।.
 
अनुवाद
 
 बालहत्या के कारण वह (अश्वत्थामा) पहले ही अपनी शारीरिक कान्ति खो चुका था और अब, अपनी शीर्ष मणि खोकर, वह शक्ति से भी हीन हो गया। इस प्रकार उसकी रस्सियाँ खोल कर उसे शिविर से बाहर भगा दिया गया।
 
तात्पर्य
 इस प्रकार भगवान् कृष्ण तथा अर्जुन की बुद्धि के कारण अपमानित अश्वत्थामा, एक ही साथ, मारा भी गया और नहीं भी मारा गया।
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥