वपनं द्रविणादानं स्थानान्निर्यापणं तथा ।
एष हि ब्रह्मबन्धूनां वधो नान्योऽस्ति दैहिक: ॥ ५७ ॥
शब्दार्थ
वपनम्—सिर से बालों को मुँड़ा कर; द्रविण—धन; अदानम्—छीना गया; स्थानात्—घर से; निर्यापणम्—भगाया गया; तथा—भी; एष:—ये सब; हि—निश्चय ही; ब्रह्म-बन्धूनाम्—ब्राह्मण के सम्बन्धियों का; वध:—वध, हत्या; न—नहीं; अन्य:—अन्य कोई विधि; अस्ति—है; दैहिक:—शरीर के विषय में ।.
अनुवाद
उसके सिर के बाल मूँडऩा, उसे संपदाहीन करना तथा उसे घर से भगा देना—ये हैं ब्रह्मबन्धु के लिए निश्चित दंड। शारीरिक वध करने का कोई विधान नहीं है।
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All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥