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श्लोक 1.7.58  |
पुत्रशोकातुरा: सर्वे पाण्डवा: सह कृष्णया ।
स्वानां मृतानां यत्कृत्यं चक्रुर्निर्हरणादिकम् ॥ ५८ ॥ |
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शब्दार्थ |
पुत्र—पुत्रों के; शोक—शोक से; आतुरा:—अभिभूत; सर्वे—वे सभी; पाण्डवा:—पाण्डु के पुत्र; सह—सहित; कृष्णया—द्रौपदी; स्वानाम्—परिजनों के; मृतानाम्—मृत; यत्—जो; कृत्यम्—करणीय; चक्रु:—सम्पन्न किया; निर्हरण-आदिकम्—जो कुछ किया जा सकता था ।. |
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अनुवाद |
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तत्पश्चात् शोकाभिभूत पाण्डु-पुत्रों तथा द्रौपदी ने अपने स्वजनों के मृत शरीरों (शवों) का समुचित दाह-संस्कार किया। |
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इस प्रकार श्रीमद्भागवत के प्रथम स्कन्ध के अन्तर्गत “द्रोण-पुत्र को दण्ड” नामक सातवें अध्याय के भक्तिवेदान्त तात्पर्य पूर्ण हुए। |
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