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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 8: महारानी कुन्ती द्वारा प्रार्थना तथा परीक्षित की रक्षा  »  श्लोक 1
 
 
श्लोक  1.8.1 
सूत उवाच
अथ ते सम्परेतानां स्वानामुदकमिच्छताम् ।
दातुं सकृष्णा गङ्गायां पुरस्कृत्य ययु: स्त्रिय: ॥ १ ॥
 
शब्दार्थ
सूत: उवाच—सूत ने कहा; अथ—इस प्रकार; ते—पाण्डवजन; सम्परेतानाम्—मृतकों का; स्वानाम्—स्वजनों का; उदकम्—जल; इच्छताम्—पाने की इच्छा से; दातुम्—देने के लिए; स-कृष्णा:—द्रौपदी के सहित; गङ्गायाम्—गंगा के तट पर; पुरस्कृत्य—आगे करके; ययु:—गईं; स्त्रिय:—स्त्रियाँ ।.
 
अनुवाद
 
 सूत गोस्वामी ने कहा : तत्पश्चात्, पाण्डवगण अपने मृत परिजनों की इच्छानुसार उन्हें जल-दान देने हेतु द्रौपदी सहित गंगा के तट पर गये। स्त्रियाँ आगे-आगे चल रही थीं।
 
तात्पर्य
 आज तक हिन्दू-समाज में यह प्रथा चल रही है कि जब किसी परिवार में कोई व्यक्ति का निधन होता है, तो लोग गंगा नदी में या किसी अन्य पवित्र नदी में स्नान करते हैं। परिवार का प्रत्येक सदस्य दिवंगत आत्मा को एक लोटा गंगाजल अर्पण करता है और स्त्रियों को आगे करके सभी लोग एक जुलूस में चलते हैं। पांडवों ने भी पाँच हजार वर्ष पूर्व इन्हीं नियमों का पालन किया था। पाण्डवों के ममेरे भाई होने के कारण भी भगवान् कृष्ण पारिवारिक सदस्यों में से एक थे।
 
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>  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥