श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 8: महारानी कुन्ती द्वारा प्रार्थना तथा परीक्षित की रक्षा  »  श्लोक 11
 
 
श्लोक  1.8.11 
सूत उवाच
उपधार्य वचस्तस्या भगवान् भक्तवत्सल: ।
अपाण्डवमिदं कर्तुं द्रौणेरस्त्रमबुध्यत ॥ ११ ॥
 
शब्दार्थ
सूत: उवाच—सूत गोस्वामी ने कहा; उपधार्य—धैर्यपूर्वक सुनकर; वच:—शब्द; तस्या:—उसके; भगवान्—भगवान् ने; भक्त-वत्सल:—अपने भक्तों के प्रति अत्यन्त प्रेम से युक्त; अपाण्डवम्—पाण्डवों के वंशज के विना; इदम्—यह; कर्तुम्—इसे करने के लिये; द्रौणे:—द्रोणाचार्य के पुत्र का; अस्त्रम्—हथियार; अबुध्यत—समझा ।.
 
अनुवाद
 
 सूत गोस्वामी ने कहा : उसके वचनों को धीरज के साथ सुनकर, अपने भक्तों के प्रति सदैव अत्यन्त वत्सल रहनेवाले, भगवान् श्रीकृष्ण तुरन्त समझ गये कि द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा ने पाण्डव-वंश के अन्तिम वंशज को समाप्त करने (निर्बीज करने) के लिये ही ब्रह्मास्त्र छोड़ा है।
 
तात्पर्य
 भगवान् सभी तरह से निष्पक्ष हैं, तो भी वे अपने भक्तों का पक्ष लेते हैं, क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति के कल्याण के लिये इसकी नितान्त आवश्यकता है। पाण्डव-कुल भक्तकुल था, अतएव भगवान् चाहते थे कि वे विश्व के ऊपर शासन चलाएँ। यही कारण था कि दुर्योधन-दल के शासन को समाप्त करके उन्होंने महाराज युधिष्ठिर का शासन स्थापित किया। इसीलिये वे गर्भ में स्थित महाराज परीक्षित की रक्षा करना चाह रहे थे। वे नहीं चाहते थे कि संसार पाण्डव-कुल से विहीन हो जाय, जो भक्तों का आदर्श कुल था।
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥