तर्ह्येवाथ मुनिश्रेष्ठ पाण्डवा: पञ्च सायकान् ।
आत्मनोऽभिमुखान्दीप्तानालक्ष्यास्त्राण्युपाददु: ॥ १२ ॥
शब्दार्थ
तर्हि—तब; एव—भी; अथ—अतएव; मुनि-श्रेष्ठ—हे मुनियों में प्रमुख; पाण्डवा:—पाण्डु के पुत्र; पञ्च—पाँच; सायकान्—हथियार; आत्मन:—स्वयं; अभिमुखान्—की ओर; दीप्तान्—लपलपाते; आलक्ष्य—देखकर; अस्त्राणि— हथियार; उपाददु:—ग्रहण किया ।.
अनुवाद
हे महान् विचारकों (मुनियों) में अग्रणी (शौनक जी), उस दहकते हुए ब्रह्मास्त्र को अपनी ओर आते देखकर पाँचों पाण्डवों ने अपने-अपने पाँचों हथियार सँभाले।
तात्पर्य
ब्रह्मास्त्र परमाणु हथियारों से भी सूक्ष्म होता है। अश्वत्थामा ने महाराज युधिष्ठिर आदि पाँचों पाण्डवों को तथा उत्तरा के गर्भ में स्थित उनके एकमात्र पौत्र को मारने के लिये अपना ब्रह्मास्त्र छोड़ा था। अतएव यह ब्रह्मास्त्र, जो परमाणु हथियार की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली तथा सूक्ष्मतर होता है, परमाणु बमों
की भाँति अंधा नहीं था। जब परमाणु बम छोड़े जाते हैं, तो वे लक्ष्य तथा अन्य वस्तुओं में अन्तर नहीं कर पाते। ये बम मुख्य रूप से निर्दोषों को हानि पहुँचाते हैं, क्योंकि इन पर कोई नियंत्रण नहीं होता। लेकिन ब्रह्मास्त्र ऐसा नहीं होता। यह लक्ष्य को पहचानता है और निर्दोष को क्षति पहुँचाये बिना आगे बढ़ता है।
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All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥