हे कृष्ण, आपने हमें विषाक्त भोजन से, भीषण अग्नि-काण्ड से, मानव-भक्षीओं से, दुष्ट सभा से, वनवास-काल के कष्टों से तथा महारथियों द्वारा लड़े गये युद्ध से बचाया है। और अब आपने हमें अश्वत्थामा के अस्त्र से बचा लिया है।
तात्पर्य
यहाँ पर घातक संघर्षों की सूची प्रस्तुत की गई है। देवकी को तो एक ही बार अपने दुष्ट भाई के कारण कष्ट मिला, अन्यथा वे कुशलपूर्वक रहीं, किन्तु कुन्ती देवी तथा उनके पुत्रों को तो वर्षों तक लगातार एक के बाद एक कष्ट उठाने पड़े। उन्हें राज्य के लिए दुर्योधन तथा उसकी टोली के लोग मुसीबतों में डालते रहे और हर बार कृष्ण ने कुन्ती के पुत्रों की रक्षा की। एक बार भीम को भोजन में विष खिला दिया गया। एक बार उन्हें लाक्षागृह में रखकर उसमें आग लगा दी गई तथा एक बार द्रौपदी का चीर हरण किया गया और दुष्ट कौरवों की सभा में उन्हें नग्न करने का प्रयास करके उसे अपमानित किया गया। भगवान् ने द्रौपदी के लिए अपरिमित वस्त्रों कि पूर्ति की, जिससे दुर्योधन का दल उसे नग्न होते न देख सका। इसी प्रकार जब पाँचों पाण्डव वनवास कर रहे थे, तो भीम को मनुष्य-भक्षक राक्षस हिडिम्ब से लडऩा पड़ा, किन्तु तब भगवान् ने भीम की रक्षा की। यह खेल यहीं नहीं समाप्त हुआ। इन सब कष्टों के बाद कुरुक्षेत्र का महान युद्ध हुआ और अर्जुन को द्रोण, भीष्म तथा कर्ण जैसे महाबली सेनानायकों का सामना करना पड़ा। और जब सब समाप्त हो गया, तो द्रोणाचार्य के पुत्र ने उत्तरा के गर्भस्थ शिशु को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र छोड़ा, तब भगवान् ने कुरुवंश के एकमात्र संभाव्य वंशज महाराज परीक्षित की रक्षा की।
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