हे भगवान्, मैं आपको शाश्वत समय, परम नियन्ता, आदि-अन्त से रहित तथा सर्वव्यापी मानती हूँ। आप सबों पर समान रूप से दया दिखलाते हैं। जीवों में जो पारस्परिक कलह है, वह सामाजिक मतभेद के कारण है।
तात्पर्य
कुन्ती देवी जानती थीं कि कृष्ण न तो उनके भतीजे हैं और न उनके पितृकुल के सामान्य पारिवारिक सदस्य हैं। वे अच्छी तरह जानती थीं कि कृष्ण आदि-भगवान् हैं, जो परमात्मा के रूप में प्रत्येक के हृदय में वास करनेवाले हैं। भगवान् के परमात्मा स्वरूप का अन्य नाम काल या शाश्वत समय भी है। यह काल हमारे सारे अच्छे तथा बुरे दोनों प्रकार के कर्मों का साक्षी है और इस प्रकार उनके द्वारा ही कर्मफल निर्धारित होते हैं। यह कहने से कोई लाभ नहीं कि पता नहीं, हम क्यों दुख भोग रहे हैं। हम उन दुष्कर्मों को भूल सकते हैं, जिनके कारण हमें इस समय कष्ट उठाना पड़ रहा है, लेकिन हमें यह स्मरण रखना चाहिए कि परमात्मा हमारे नित्य संगी हैं, अतएव वे भूत, वर्तमान तथा भविष्य सब कुछ जानते हैं। चूँकि भगवान् कृष्ण का परमात्मा स्वरूप ही सारे कर्मों तथा फलों को निर्धारित करनेवाला है, अतएव वे परम नियन्ता भी हैं। उनकी मर्जी के बिना एक पत्ती भी नहीं हिल सकती। जीवों को उनकी योग्यता के अनुसार स्वतन्त्रता दी गई है और इस स्वतन्त्रता के दुरुपयोग के कारण ही दुख भोगना होता है। भगवद्भक्त इस स्वतन्त्रता का दुरुपयोग नहीं करते, अतएव वे भगवान् की अच्छी सन्तानें हैं। अन्य लोग, जो स्वतन्त्रता का दुरुपयोग करते हैं, सनातन काल द्वारा कष्ट को प्राप्त होते हैं। काल ही बद्धजीवों को सुख तथा दुख दोनों प्रदान करता है। यह सब काल द्वारा पूर्वनिर्धारित है। जिस प्रकार हमारे न चाहने पर भी दुख आ जाते हैं, उसी प्रकार बिना माँगे सुख भी मिल सकता है, क्योंकि सुख-दुख काल द्वारा पूर्व-निर्धारित होते हैं। अतएव भगवान् का न तो कोई मित्र है, न शत्रु। प्रत्येक व्यक्ति अपने ही भाग्य फल का सुख-दुख भोग रहा है। यह भाग्य जीवों द्वारा सामाजिक संघर्ष करते हुए निर्मित होता है। यहाँ प्रत्येक व्यक्ति प्रकृति पर प्रभुत्व जताना चाहता है, अतएव प्रत्येक व्यक्ति भगवान् की अध्यक्षता में अपना भाग्य बनाता है। चूँकि भगवान् सर्वव्यापी हैं, अतएव वे हर एक के कर्मों को देख सकते हैं, और चूँकि भगवान् का कोई आदि- अन्त नहीं है, अतएव वे शाश्वत समय अर्थात् काल भी कहलाते हैं।
शेयर करें
All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.