न—नहीं; इयम्—यह हमारा राज्य; शोभिष्यते—सुन्दर लगेगा; तत्र—तब; यथा—जैसा अब है, इस रूप में; इदानीम्— कैसे; गदाधर—हे कृष्ण; त्वत्—आपके; पदै:—चरणों के द्वारा; अङ्किता—अंकित; भाति—शोभायमान हो रही है; स्व लक्षण—आपके चिह्नों से; विलक्षितै:—चिह्नों से ।.
अनुवाद
हे गदाधर (कृष्ण), इस समय हमारे राज्य में आपके चरण-चिह्नों की छाप पड़ी हुई है, और इसके कारण यह सुन्दर लगता है, लेकिन आपके चले जाने पर यह ऐसा नहीं रह जायेगा।
तात्पर्य
भगवान् के चरणों में कुछ विशिष्ट चिह्न होते हैं, जिनके कारण वे अन्यों से भिन्न हैं। भगवान् के चरणतल (तलवे) में ध्वजा, वज्र, अंकुश, छत्र, कमल, चक्र आदि चिह्न बने रहते हैं। जहाँ-जहाँ भगवान् चलते हैं, वहाँ की नरम भूमि की रज पर ये चिह्न अंकित होते जाते हैं। अतएव जब श्रीकृष्ण पाण्डवों के साथ रह रहे थे, तो हस्तिनापुर की भूमि इस प्रकार से अंकित हो गई थी और इन शुभ चिह्नों के कारण पाण्डवों का राज्य फूल-फल रहा था। कुन्ती देवी ने इन प्रतिष्ठित लक्षणों की ओर संकेत किया और वे भगवान् की अनुपस्थिति में दुर्भाग्य के प्रति भयातुर थी।
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