गौरवपूर्ण दिनों में या कलियुग के आगमन के पूर्व ब्राह्मण, गाय, स्त्री, बालक तथा वृद्ध पुरुषों की समुचित रक्षा की जाती थी। १. ब्राह्मणों की रक्षा से आध्यात्मिक जीवन-प्राप्ति के लिए नितान्त वैज्ञानिक संस्कृति, वर्णाश्रम-व्यवस्था का पालन होता है।
२. गायों की रक्षा से भोजन का चमत्कारी रूप अर्थात् जीवन के उच्चादर्शों को समझने के लिए मस्तिष्क के सूक्ष्म तंतुओं को बनाये रखनेवाला दूध मिलता रहता है। ३. स्त्रियों की रक्षा से समाज की शुचिता बनी रहती है, जिससे हमें शान्ति, सुस्थिरता तथा जीवन की उन्नति के लिए अच्छी सन्तति मिलती है।
४. बच्चों की रक्षा से मनुष्य-जीवन को वह सुनहरा अवसर प्राप्त होता है, जिससे भव बन्धन से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होता है। बालकों की ऐसी रक्षा उसके जन्म के दिन से ही गर्भाधान-संस्कार नामक शुद्धिकरण की प्रक्रिया के द्वारा प्रारम्भ हो जाती है।
५. वृद्धों की रक्षा से उन्हें मृत्यु के पश्चात् श्रेष्ठतर जीवन की तैयारी करने का सुअवसर प्राप्त होता है।
यह पूरा दृष्टिकोण ऐसे कारकों पर आधारित है, जिनसे सफल मनुष्यता प्राप्त होती है। इसके विपरीत, सजावटी कुत्तों तथा बिल्लियों की सभ्यता है। उपर्युक्त निर्दोष प्राणियों का वध सर्वथा वर्जित है, क्योंकि यदि उनका अपमान भी किया जाय, तो आयु क्षीण होती है। कलियुग में इन जीवों की समुचित सुरक्षा नहीं हो पाती, अतएव वर्तमान पीढ़ी की आयु काफी घट गई है।
भगवद्गीता में कहा गया है कि जब समुचित सुरक्षा के अभाव में स्त्रियाँ कुलटा हो जाती हैं, तब उनसे अवांछित सन्तान उत्पन्न होती है, जिसे वर्णसंकर कहते हैं। सती स्त्री का अपमान करने का अर्थ है, अपनी आयु को खतरे में डालना। दुर्योधन के भाई दुस्शासन ने आदर्श सती नारी द्रौपदी का अपमान किया था, अतएव उन दुष्टों को असमय मरना पड़ा। ये हैं भगवान् के कुछ कठोर नियम, जिनका ऊपर वर्णन हुआ है।