आमन्त्र्य पाण्डुपुत्रांश्च शैनेयोद्धवसंयुत: ।
द्वैपायनादिभिर्विप्रै: पूजितै: प्रतिपूजित: ॥ ७ ॥
शब्दार्थ
आमन्त्र्य—विदाई लेकर; पाण्डु-पुत्रान्—पाण्डु के समस्त पुत्रों से; च—भी; शैनेय—सात्यफि; उद्धव—उद्धव; संयुत:—समेत; द्वैपायन-आदिभि:—व्यासदेव जैसे ऋषियों के द्वारा; विप्रै:—ब्राह्मणों के द्वारा; पूजितै:—पूजित होकर; प्रतिपूजित:—भगवान् ने भी समान रूप से आदानप्रदान किया ।.
अनुवाद
फिर भगवान् श्रीकृष्ण ने सात्यकि तथा उद्धव के साथ प्रस्थान के लिए तैयारी की। उन्होंने श्रील व्यासदेव आदि ब्राह्मणों से पूजित होने के बाद पाण्डु-पुत्रों को आमन्त्रित किया। भगवान् ने सभी का समुचित अभिवादन किया।
तात्पर्य
क्षत्रिय होने के कारण श्रीकृष्ण ब्राह्मणों द्वारा पूजनीय नहीं थे, लेकिन वहाँ पर उपस्थित श्रील व्यासदेव आदि सारे ब्राह्मण उन्हें भगवान् के रूप में मानते थे, अतएव इन सबों ने उनकी पूजा की। भगवान् ने इस सामाजिक व्यवस्था के सम्मानार्थ अमिवादन किया कि क्षत्रिय को ब्राह्मणों के आदेशों के प्रति आज्ञाकारी
होना चाहिए। यद्यपि श्रीकृष्ण को सदैव सभी ओर से परमेश्वर को मिलनेवाला सम्मान प्राप्त होता रहता था, लेकिन भगवान् कभी भी समाज के चारों आश्रमों की प्रथाओं से रंच मात्र भी विचलित नहीं होते थे। भगवान् ने प्रयोजनवश इन सामाजिक प्रथाओं को सम्पन्न किया, जिससे भविष्य में अन्य लोग उनका अनुसरण करते रहें।
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All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥