श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 8: महारानी कुन्ती द्वारा प्रार्थना तथा परीक्षित की रक्षा  »  श्लोक 8
 
 
श्लोक  1.8.8 
गन्तुं कृतमतिर्ब्रह्मन् द्वारकां रथमास्थित: ।
उपलेभेऽभिधावन्तीमुत्तरां भयविह्वलाम् ॥ ८ ॥
 
शब्दार्थ
गन्तुम्—जाने के लिये इच्छुक; कृतमति:—संकल्प करके; ब्रह्मन्—हे ब्राह्मण; द्वारकाम्—द्वारका की ओर; रथम्—रथ पर; आस्थित:—आरूढ़; उपलेभे—देखा; अभिधावन्तीम्—तेजी से आती हुई; उत्तराम्—उत्तरा को; भय-विह्वलाम्— भयभीत ।.
 
अनुवाद
 
 ज्योंही वे द्वारका प्रस्थान् के लिये रथ पर सवार हुए, त्योंही उन्होंने भयभीत उत्तरा को तेजी से उनकी ओर आते हुए देखा।
 
तात्पर्य
 पाण्डव-कुल के सारे सदस्य अपनी रक्षा के लिये भगवान् पर आश्रित थे, अतएव भगवान् समस्त परिस्थितियों में उनकी रक्षा करते थे। वैसे तो, भगवान् सबों की रक्षा करते हैं, किन्तु जो लोग उन पर पूर्णरूपेण निर्भर रहते हैं, वे उनकी विशेष रखवाली करते हैं। पिता अपने नन्हें पुत्र के प्रति विशेष सतर्क रहता है, क्योंकि वह पिता पर पूर्णत: आश्रित होता है।
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥