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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 9: भगवान् कृष्ण की उपस्थिति में भीष्मदेव का देह-त्याग  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  1.9.10 
कृष्णं च तत्प्रभावज्ञ आसीनं जगदीश्वरम् ।
हृदिस्थं पूजयामास माययोपात्तविग्रहम् ॥ १० ॥
 
शब्दार्थ
कृष्णम्—भगवान् श्रीकृष्ण को; —भी; तत्—उनका; प्रभाव-ज्ञ:—महिमा को जाननेवाले (भीष्म); आसीनम्—बैठे हुए; जगत्-ईश्वरम्—ब्रह्माण्ड के स्वामी को; हृदि-स्थम्—हृदय में आसीन; पूजयाम् आस—पूजा; मायया—अन्तरंगा शक्ति के द्वारा; उपात्त—प्रकट; विग्रहम्—स्वरूप को ।.
 
अनुवाद
 
 भगवान् श्रीकृष्ण प्रत्येक के हृदय में आसीन हैं, तो भी वे अपनी अन्तरंगा शक्ति से अपना दिव्य रूप प्रकट करते हैं। ऐसे भगवान् साक्षात भीष्मदेव के समक्ष बैठे हुए थे। और चूँकि भीष्मदेव उनकी महिमा से परिचित थे, अतएव उन्होंने उनकी विधिवत् पूजा की।
 
तात्पर्य
 भगवान् की सर्वशक्तिमत्ता का प्रदर्शन प्रत्येक स्थान में उनकी उपस्थिति द्वारा होता है। वे अपने नित्य धाम गोलोक वृन्दावन में सदैव उपस्थित रहते हैं, तो भी वे जन-जन के हृदय में, यहाँ तक कि प्रत्येक अदृश्य परमाणु के भीतर भी स्थित रहते हैं। जब वे इस भौतिक जगत में अपने नित्य दिव्य रूप को व्यक्त करते हैं, तो वे अपनी अन्तरंगा शक्ति से ऐसा करते हैं। बहिरंगा शक्ति या माया का इस नित्य रूप से कोई सरोकार नहीं होता। ये सारी बातें श्री भीष्मदेव को ज्ञात थीं, अतएव उन्होंने तदनुसार ही उनकी पूजा की।
 
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>  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥