हे राजन् भगवान् (श्रीकृष्ण) की योजना को कोई नहीं जान सकता। यद्यपि बड़े-बड़े चिन्तक उनके विषय में जिज्ञासा करते हैं, लेकिन वे मोहित हो जाते हैं।
तात्पर्य
परम विशेषज्ञ (बारह प्राधिकृत पुरुषों में से एक) भीष्म के द्वारा विगत पापों तथा उनसे होने वाले फलों के द्वारा महाराज युधिष्ठिर के मोह का पूरी तरह से निषेध हो जाता है। भीष्म महाराज युधिष्ठिर को जोर देकर बताना चाह रहे थे कि अनादि काल से शिव तथा ब्रह्मा जैसे देवातओं-समेत कोई भी भगवान् की वास्तविक योजना को नहीं जान पाया है। तो भला हम उसके विषय में कैसे जान सकते हैं? इसके विषय में जिज्ञासा करना भी व्यर्थ ही है। यहाँ तक कि मुनियों द्वारा गहन दार्शनिक जिज्ञासाएँ भी भगवान् की योजना को ठीक से निश्चित् नहीं कर पातीं, अतएव सर्वोत्तम नीति है कि बिना तर्क के भगवान् के आदेशों का सहज भाव से पालन किया जाय। पाण्डवों के कष्ट उनके पूर्व कर्मों के कारण नहीं थे। भगवान् की योजना तो धर्म का राज्य स्थापित करने की थी। अतएव पुण्य की विजय स्थापित करने के लिए उनके ही भक्तों को कुछ देर के लिए कष्ट उठाने पड़े। भीष्मदेव धर्म की विजय देखकर निश्चय ही संतुष्ट थे और राजा युधिष्ठिर को सिंहासनारूढ़ देखकर प्रसन्न थे, यद्यपि वे स्वयं उनके विरुद्ध लड़े थे। भीष्म जैसे महान योद्धा भी कुरुक्षेत्र के युद्ध को नहीं जीत सके, क्योंकि भगवान् यह दिखाना चाहते थे कि पाप कभी पुण्य को नहीं जीत सकता, चाहे कोई कुछ भी करना चाहे। भीष्मदेव भगवान् के महान भक्त थे, लेकिन उन्हें भगवान् की इच्छानुसार पाण्डवों के विरुद्ध युद्ध करना पड़ा, क्योंकि भगवान् यह दिखलाना चाह रहे थे कि गलत पक्ष की ओर से लडऩे पर भीष्म जैसा योद्धा भी जीत नहीं सकता।
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