अतएव हे भरतवंश में श्रेष्ठ (युधिष्ठिर), मैं मानता हूँ कि यह सब भगवान् की योजना के अन्तर्गत है। तुम भगवान् की अचिन्त्य योजना को स्वीकार करो और उसका पालन करो। अब तुम नियुक्त किए गये शासनाध्यक्ष हो, अतएव हे महाराज, आपको अब उन लोगों की देखभाल करनी चाहिए जो असहाय हो चुके हैं।
तात्पर्य
एक कहावत है कि गृहस्वामिनी अपनी पुत्री को शिक्षा देते हुए पुत्रवधू को सिखाती है। इसी प्रकार भगवान् भी अपने भक्त को शिक्षा देकर संसार को शिक्षा देते हैं। भक्त को भगवान् से कुछ नया नहीं सीखना होता, क्योंकि भगवान् निष्ठावान भक्त को उसके भीतर से शिक्षा देते हैं। अतएव, जब भी भक्त को शिक्षा देने का प्रदर्शन किया जाता है, जैसा कि भगवद्गीता के उपदेश में हुआ है, तो यह कम बुद्धिमान मनुष्यों को शिक्षा देने के लिए होता है। अतएव भक्त का धर्म है कि वह भगवान् द्वारा प्रदत्त विपत्तियों को आशीर्वाद मानकर सह ले। भीष्मदेव ने पाण्डवों को सलाह दी कि वे बिना हिचक के शासनभार स्वीकार कर लें। कुरुक्षेत्र के युद्ध के कारण बेचारी प्रजा असुरक्षित थी और वह महाराज युधिष्ठिर द्वारा राज्य ग्रहण करने की प्रतीक्षा कर रही थी। भगवान् का शुद्ध भक्त सारी विपत्तियों को भगवान् का अनुग्रह मानता है। चूँकि भगवान् परम पूर्ण हैं, अतएव भक्त तथा भगवान् में कोई लौकिक अन्तर नहीं है।
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