हे राजन्, तुमने अज्ञानवश ही जिस व्यक्ति को अपना ममेरा भाई, अपना अत्यन्त प्रिय मित्र, शुभैषी, मन्त्री, दूत, उपकारी इत्यादि माना है, वे स्वयं भगवान् श्रीकृष्ण हैं।
तात्पर्य
श्रीकृष्ण यद्यपि पाण्डवों के ममेरे भाई, मित्र, हितैषी, मन्त्री, दूत, उपकारी, आदि बने हुए थे, तो भी वे थे तो पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् ही। अपनी अहैतुकी कृपावश तथा अपने अनन्य भक्तों पर कृपा जताने के लिए वे सभी प्रकार की सेवा करते हैं, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं लगाना चाहिए कि उन्होंने परम पुरुष के रूप में अपना पद बदल दिया है। उन्हें सामान्य पुरुष के रूप में सोचना सबसे बड़ी मूर्खता है।
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