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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 9: भगवान् कृष्ण की उपस्थिति में भीष्मदेव का देह-त्याग  »  श्लोक 3
 
 
श्लोक  1.9.3 
भगवानपि विप्रर्षे रथेन सधनञ्जय: ।
स तैर्व्यरोचत नृप: कुवेर इव गुह्यकै: ॥ ३ ॥
 
शब्दार्थ
भगवान्—भगवान् (श्रीकृष्ण); अपि—भी; विप्र-ऋषे—हे ब्रह्मर्षियों; रथेन—रथ पर; स-धनञ्जय:—धनञ्जय (अर्जुन) सहित; स:—वे; तै:—उनके द्वारा; व्यरोचत—अत्यन्त राजसी प्रतीत हो रहे थे; नृप:—राजा (युधिष्ठिर); कुवेर— देवताओं का भंडारी, कुबेर; इव—सदृश; गुह्यकै:—गुह्यक नामक साथियों से ।.
 
अनुवाद
 
 हे ब्रह्मर्षी, भगवान् श्रीकृष्ण भी, अर्जुन के साथ रथ पर सवार होकर पीछे-पीछे चले आ रहे थे। इस प्रकार राजा युधिष्ठिर अत्यन्त राजसी प्रतीत हो रहे थे, मानो कुबेर अपने साथियों (गुह्यकों) से घिरा हो।
 
तात्पर्य
 भगवान् श्रीकृष्ण चाहते थे कि सारे पाण्डव भीष्मदेव के पास पूरे राजसी ठाठबाट से जाँए, जिससे वे अपने अन्तिम समय उन्हें देखकर प्रसन्न हों। कुबेर देवताओं में सबसे धनी है। यहाँ पर युधिष्ठिर कुबेर की तरह प्रतीत हो रहे थे, क्योंकि श्रीकृष्ण के साथ यह जुलूस राजा युधिष्ठिर के राजपद के अनुकूल था।
 
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