अपने मित्र के आदेश का पालन करते हुए, भगवान् श्रीकृष्ण कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में अर्जुन तथा दुर्योधन के सैनिकों के बीच में प्रविष्ट हो गये और वहाँ स्थित होकर उन्होंने अपनी कृपापूर्ण चितवन से विरोधी पक्ष की आयु क्षीण कर दी। यह सब शत्रु पर उनके दृष्टिपात करने मात्र से ही हो गया। मेरा मन उन कृष्ण में स्थिर हो।
तात्पर्य
भगवद्गीता (१.२१-२५) में अर्जुन ने अच्युत भगवान् श्रीकृष्ण को आज्ञा दी कि वे उसके रथ को सैनिकों के व्यूह के बीच में ले चलें। उसने उन्हें आज्ञा दी कि वे वहाँ तब तक ठहरें जब तक वह युद्ध में आये हुये उन शत्रुओं का निरीक्षण पूरा न कर ले, जिनसे उसे लडऩा था। जब भगवान् से यह कहा गया, तो उन्होंने झट-से वैसा कर दिया, मानो वे कोई आज्ञापालक हों। भगवान् ने विपक्षी-दल के सभी महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों की ओर संकेत करते हुए कहा, “ये रहे भीष्म, ये रहे द्रोण इत्यादि, इत्यादि।” परम पुरुष होने के कारण भगवान् न तो किसी के आज्ञापालक हैं, न सन्देशवाहक, चाहे वह जो भी हो। लेकिन अपने भक्तों पर अहैतुकी कृपा तथा वत्सलता के कारण, कभी-कभी वे अपने भक्त के आदेश का पालन एक तत्पर दास की तरह करते हैं। अपने भक्त के आदेश का पालन करते हुए वे उसी प्रकार प्रसन्न होते हैं, जिस प्रकार पिता अपने नन्हें बालक के आदेश को पूरा करने से प्रसन्न होता है। यह तभी सम्भव है जब भगवान् तथा उनके भक्तों के मध्य शुद्ध दिव्य प्रेम हो और भीष्मदेव इस तथ्य से अवगत थे। इसीलिए उन्होंने भगवान् को ‘पार्थ-सखे’ कह कर सम्बोधित किया।
भगवान् ने अपनी कृपापूर्ण चितवन से विपक्षियों की आयु क्षीण कर दी। कहा जाता है कि कुरुक्षेत्र के युद्धक्षेत्र में सम्मिलित सारे योद्धाओं को मोक्ष-लाभ हो सका, क्योंकि मृत्यु के समय उन्होंने साक्षात् भगवान् का दर्शन किया था। अतएव अर्जुन के शत्रुओं की आयु को क्षीण करने का अर्थ यह नहीं होता कि कृष्ण अर्जुन का पक्ष ले रहे थे। वस्तुत: वे विपक्षियों पर कृपालु थे, क्योंकि यदि वे सामान्य तौर पर घर में मरे होते, तो उन्हें मोक्ष-लाभ न हुआ होता। यहाँ उन्हें मृत्यु के समय भगवान् के दर्शन करने का तथा भौतिक जीवन से मुक्ति पाने का अवसर मिला था। अतएव भगवान् सर्व-मंगलमय हैं और वे जो कुछ करते हैं, वह सबों की भलाई के लिए होता है। ऊपर-ऊपर से यह सब उनके घनिष्ठ मित्र अर्जुन की विजय के लिए प्रतीत हो रहा था, लेकिन वास्तविक रूप में यह अर्जुन के शत्रुओं की भलाई के लिए था। ऐसे हैं भगवान् के दिव्य कार्य- कलाप और जो भी इन्हें समझता है, वह भी इस भौतिक शरीर का त्याग करने के पश्चात् मोक्ष प्राप्त करता है। भगवान् किसी भी हालत में कोई गलत कार्य नहीं करते, क्योंकि वे परम पूर्ण हैं और सर्वदा सबों के लिए मंगलमय हैं।
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