मेरा मन उन भगवान् श्रीकृष्ण में एकाग्र हो, जिनकी चाल तथा प्रेम भरी मुस्कान ने व्रजधाम की रमणियों (गोपियों) को आकृष्ट कर लिया। [रास लीला से] भगवान् के अन्तर्धान हो जाने पर गोपिकाओं ने भगवान् की लाक्षणिक गतियों का अनुकरण किया।
तात्पर्य
व्रजभूमि की गोपियों ने प्रेममय सेवा में अतीव आह्लाद से भगवान् के साथ-साथ नाचकर, माधुर्य रूप में उनका आलिंगन करके, उनके साथ हास-परिहास करके तथा प्रेमपूर्ण भाव में उनकी ओर देखकर उनके साथ एकात्म्य स्थापित किया। अर्जुन के साथ भगवान् का सम्बन्ध, भीष्मदेव जैसे भक्त द्वारा प्रशंसनीय है, लेकिन गोपियों के साथ भगवान् का सम्बन्ध और भी अधिक शुद्ध प्रेममय सेवा के कारण अधिक प्रशंसनीय है। भगवान् की कृपा से अर्जुन को सारथी के रूप में भगवान् की भ्रातृ सेवा प्राप्त हुई थी, लेकिन भगवान् ने अर्जुन को अपने समान स्तर की शक्ति प्रदान नहीं की। किन्तु गोपियाँ तो भगवान् के बराबर का स्तर प्राप्त करके असल में भगवान के साथ एकात्म हो गईं। भीष्म द्वारा गोपियों के स्मरण उनकी इस आकांक्षा की एक प्रार्थना है, जिससे उन्हें जीवन की अन्तिम अवस्था में गोपियों की कृपा भी प्राप्त हो सके। भगवान् अपने शुद्ध भक्तों को महिमामण्डित होते देखकर अधिक प्रसन्न होते हैं, अतएव भीष्मदेव ने केवल अर्जुन के कृत्यों का ही यशोगान नहीं किया, अपितु गोपियों का भी स्मरण किया, जिन्हें भगवान् की प्रेममयी सेवा करने के कारण भगवान् की अद्वितीय कृपा प्राप्त हो सकी। भगवान् के साथ गोपियों की समता कभी भी निर्विशेषवादियों के सायुज्य मोक्ष के समान समझने की गलती नहीं करनी चाहिए। यह समता पूर्ण आह्लाद की है, जहाँ अन्तर पूर्णतया मिट जाता है, क्योंकि प्रेमी-प्रेमिका के हित आपस में जुड़ जाते हैं।
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