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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 9: भगवान् कृष्ण की उपस्थिति में भीष्मदेव का देह-त्याग  »  श्लोक 5
 
 
श्लोक  1.9.5 
तत्र ब्रह्मर्षय: सर्वे देवर्षयश्च सत्तम ।
राजर्षयश्च तत्रासन् द्रष्टुं भरतपुङ्गवम् ॥ ५ ॥
 
शब्दार्थ
तत्र—वहाँ; ब्रह्म-ऋषय:—ब्राह्मणों में ऋषि; सर्वे—समस्त; देव-ऋषय:—देवताओं में ऋषि; —तथा; सत्तम— सतोगुण को प्राप्त; राज-ऋषय:—राजाओं में ऋषि; —तथा; तत्र—उस स्थान पर; आसन्—उपस्थित थे; द्रष्टुम्— देखने के लिए; भरत—राजा भरत के वंशजों में; पुङ्गवम्—प्रधान को ।.
 
अनुवाद
 
 राजा भरत के वंशजों में प्रधान (भीष्म) को देखने के लिए ब्रह्माण्ड के सारे सतोगुणी महापुरुष, यथा देवर्षि, ब्रह्मर्षि तथा राजर्षि वहाँ पर एकत्र हुए थे।
 
तात्पर्य
 ऋषि वे हैं, जिन्होंने आध्यात्मिक उपलब्धि द्वारा पूर्णता प्राप्त की है। ऐसी आध्यात्मिक उपलब्धि कोई भी अर्जित कर सकता है, चाहे वह राजा हो या साधु हो। भीष्मदेव स्वयं ब्रह्मर्षि थे और राजा भरत के वंशजों में प्रमुख थे। सारे ऋषि सतोगुणी होते हैं। वे सभी महान योद्धा की आसन्न मृत्यु का समाचार सुनकर वहाँ एकत्र हुए थे।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥